बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन पहली बार मुंबई में जुहू के होटल में लोगों को बता रहे थे कि कैसे वह टीबी से लड़े हैं। टीबी यानी ट्यूबरकोलोसिस, वह बीमारी, जो मुंबई में विकराल रूप लेती जा रही है। इसके मरीज़ अब महामारी लेकर घूम रहे हैं। अमिताभ बता रहे थे कि कैसे साल 2000 में जब वह 'कौन बनेगा करोड़पति' के लिए शूट कर रहे थे, अचानक उन्हें सुबह भूख न लगना, कमज़ोरी और शाम को तबियत खराब जैसा लगने लगा था। कुछ दिन बाद वह डॉक्टर के यहां पहुंचे तो तमाम जांचों के बाद साफ हो गया कि जो सितारा तेजी से टेलीविजन पर वापसी कर रहा है, दरअसल वह टीबी से जूझ रहा है।
अमिताभ ने पहली बार खुद के ट्यूबरकोलोसिस के बारे में खुलकर बात करते हुए बताया कि जब वह टीबी से लड़ रहे थे, गोलियों का लंबा डोज़ लेने की हिदायत दी गई और वह डॉक्टर की हर सलाह पर अमल करते रहे। अमिताभ ने बताया कि कैसे टीबी का रोगी आराम से काम कर सकता है, शर्त सिर्फ इतनी है कि गोलियां लेने में कोई कोताही न बरती जाए। महानायक बताते हैं कि कैसे एक जमाने में टीबी या तपेदिक या क्षय रोग सिर्फ अमीरों की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब यह सबसे ज्यादा मुंबई की झुग्गी बस्तियों में फैल रही है।
ये सब बातें अमिताभ लोगों को इसलिए बता रहे थे, क्योंकि वह शहर में टीबी के खिलाफ शुरू किए गए अभियान के ब्रांड एम्बैसेडर बनाए गए हैं। इसी सिलसिले में अमिताभ ने बीएमसी के साथ मिलकर दो विज्ञापन जारी किए हैं।
मुंबई में हर साल 30,000 लोग टीबी का शिकार हो रहे हैं, और यह वह आंकड़ा है, जो सरकारी अस्पतालों को मिला है। लेकिन जानकार कह रहे हैं कि दरअसल टीबी के रोगी समाज में इससे कहीं ज्यादा हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उन रोगियों को हो रही है, जिनके ऊपर टीबी की दवाओं ने भी असर करना बंद कर दिया है। डॉक्टर कह रहे हैं ऐसी टीबी से सावधान होना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह लाइलाज हो सकती है। मुंबई में ऐसे टीबी के रोगियों की तादाद करीब 6,000 तक पहुंच चुकी है।
बीएमसी की 'टीबी हारेगा - देश जीतेगा' मुहिम में सबसे ज्यादा ज़ोर उन झुग्गी बस्तियों पर है, जहां सफाई बेहद कम है और लोग दो हफ्ते से ज्यादा अरसे की खांसी को गंभीरता से नहीं लेते।
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