नई दिल्ली:
बॉलीवुड के 'शहंशाह' अमिताभ बच्चन का भी हाजी अली की दरगाह से रिश्ता रहा है, क्योंकि वर्ष 1982 में उनके साथ हुई दुर्घटना के बाद जब उन्होंने अपनी अधूरी फिल्म 'कुली' की शूटिंग की, तो फिल्म का क्लाईमेक्स इसी दरगाह में फिल्माया गया था। वैसे, मुंबई में 15वीं शताब्दी से मौजूद इस दरगाह पर फिल्मी सितारे ही नहीं, हर संप्रदाय के लोग भारी तादाद में आते ही रहते हैं।
1431 में बनाई गई थी यह दरगाह और मस्जिद...
सूफी संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में वर्ष 1431 में बनाई गई यह मस्जिद और दरगाह देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई शहर में वर्ली स्थित समुद्र तट के पास एक छोटे-से टापू पर मौजूद है। हाजी अली ट्रस्ट के अनुसार हाजी अली उज़्बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से सारी दुनिया घूमते हुए भारत पहुंचे थे, और उन्हीं के नाम से जानी जाने वाली यह दरगाह मुस्लिमों और हिन्दुओं, दोनों ही समुदायों के लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है, और मुंबई का प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल भी है।
मुख्य सड़क से दरगाह तक बना है एक पुल...
वर्ली की खाड़ी में स्थित दरगाह मुख्य सड़क से लगभग 400 मीटर की दूरी पर छोटे-से टापू पर बनी हुई है, और दरगाह तक पहुंचने के लिए मुख्य सड़क से एक पुल बना हुआ है, जिसकी ऊंचाई काफी कम है, और पुल के ज़रिये दरगाह तक सिर्फ निचले ज्वार के समय ही जाया जा सकता है, क्योंकि बाकी वक्त पुल समुद्र के पानी के नीचे डूबा रहता है।
85 फुट की मीनार है दरगाह की पहचान...
हाजी अली की दरगाह इस टापू पर लगभग साढ़े चार हज़ार वर्ग मीटर में फैली हुई है, और दरगाह व मस्जिद की बाहरी दीवारें मुख्यतः सफेद रंगी गई हैं। दरगाह के पास ही 85 फुट ऊंचाई वाली एक मीनार है, जिसकी बदौलत इस परिसर को दूर से ही पहचाना जा सकता है। मस्जिद के अंदर ही पीर हाजी अली की मज़ार भी है, जिसे लाल एवं हरी चादरों से सजाया गया है। मज़ार के चारों ओर चांदी के डंडों से बना एक दायरा है। दरगाह के मुख्य कक्ष में संगमरमर से बने कई खंभे हैं, जिन पर रंगीन कांच से कलाकारी की गई है, और अल्लाह के 99 नाम भी उकेरे गए हैं।
1431 में बनाई गई थी यह दरगाह और मस्जिद...
सूफी संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में वर्ष 1431 में बनाई गई यह मस्जिद और दरगाह देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई शहर में वर्ली स्थित समुद्र तट के पास एक छोटे-से टापू पर मौजूद है। हाजी अली ट्रस्ट के अनुसार हाजी अली उज़्बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से सारी दुनिया घूमते हुए भारत पहुंचे थे, और उन्हीं के नाम से जानी जाने वाली यह दरगाह मुस्लिमों और हिन्दुओं, दोनों ही समुदायों के लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है, और मुंबई का प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल भी है।
मुख्य सड़क से दरगाह तक बना है एक पुल...
वर्ली की खाड़ी में स्थित दरगाह मुख्य सड़क से लगभग 400 मीटर की दूरी पर छोटे-से टापू पर बनी हुई है, और दरगाह तक पहुंचने के लिए मुख्य सड़क से एक पुल बना हुआ है, जिसकी ऊंचाई काफी कम है, और पुल के ज़रिये दरगाह तक सिर्फ निचले ज्वार के समय ही जाया जा सकता है, क्योंकि बाकी वक्त पुल समुद्र के पानी के नीचे डूबा रहता है।
85 फुट की मीनार है दरगाह की पहचान...
हाजी अली की दरगाह इस टापू पर लगभग साढ़े चार हज़ार वर्ग मीटर में फैली हुई है, और दरगाह व मस्जिद की बाहरी दीवारें मुख्यतः सफेद रंगी गई हैं। दरगाह के पास ही 85 फुट ऊंचाई वाली एक मीनार है, जिसकी बदौलत इस परिसर को दूर से ही पहचाना जा सकता है। मस्जिद के अंदर ही पीर हाजी अली की मज़ार भी है, जिसे लाल एवं हरी चादरों से सजाया गया है। मज़ार के चारों ओर चांदी के डंडों से बना एक दायरा है। दरगाह के मुख्य कक्ष में संगमरमर से बने कई खंभे हैं, जिन पर रंगीन कांच से कलाकारी की गई है, और अल्लाह के 99 नाम भी उकेरे गए हैं।
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