नई दिल्ली:
फिल्मी पर्दे के जरिए सामाजिक मुद्दों पर चोट करने वाले अभिनेता आदिल हुसैन अपनी नई फिल्म 'मुक्ति भवन' में कुछ अलग अंदाज में नजर आ रहे हैं. बड़ी बात को हल्के-फुल्के अंदाज में बयां करने वाली इस फिल्म को लेकर आदिल का कहना है कि इस फिल्म का विषय गंभीर है, लेकिन यह गंभीर फिल्म नहीं है. इस शुक्रवार को रिलीज हो रही फिल्म 'मुक्ति भवन' के प्रचार के लिए दिल्ली आए आदिल ने टेलीफोन पर खास बातचीत में आईएएनएस को बताया, "यह फिल्म एक पिता और बेटे की कहानी है. इस फिल्म में पिता की मोक्ष पाने की इच्छा पूरी करने के लिए बेटा उन्हें लेकर काशी आता है.' आदिल को 'पार्चड' और 'लाइफ ऑफ पाई' में निभाए गए गंभीर किरदारों के लिए जाना जाता है, इस फिल्म को भी क्या सीरियस ड्रामा कहा जाएगा, इस पर आदिल ने कहा, "यह गंभीर मुद्दे को हल्के-फुल्के अंदाज में बयां करने वाली फिल्म है. इस फिल्म का विषय वाकई में गंभीर है. फिल्म को देखने के दौरान लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट, हंसी, आंसू, आश्चर्य कई भाव आएंगे.'
आदिल ने कहा, "यह फिल्म दर्शकों को संपूर्ण मनोरंजन के साथ संदेश भी देगी. हमें नहीं पता कि कल क्या होगा, लेकिन हम कल की चिंता में अपने आज को भूल जाते हैं, इस फिल्म में लोगों को अपने वर्तमान को हंसते हुए खुलकर जीने का संदेश दिया गया हैं." किरदार के चुनाव के पीछे का कारण पूछे जाने पर आदिल ने बताया, "मुझे फिल्म का किरदार बहुत पसंद आया. यह एक मध्यमवर्गीय परिवार का शख्स है, जो अपनी रोज-मर्रा के कामों में उलझा रहता है, एक दिन अचानक उसका पिता उसे कहता है कि उनका अंतिम समय आ गया है और वह काशी जाना चाहते हैं, तो न चाहते हुए भी वह सब काम छोड़कर उनके साथ जाता है."
आदिल कहते हैं, "मुझे ऐसा लगता है कि ज्यादातर परिवारों में बेटे और बाप की बीच अक्सर कम संवाद होता है. आप फिल्म में देखेंगे कि जब ये दोनों काशी में रहते हैं तो इनके बीच कई तरह की बातें होती हैं." आदिल से जब पूछा गया कि क्या वह व्यावसायिक फिल्मों के दौर से खुश हैं, तो उन्होंने कहा, "फिल्म बनाना एक कला है, जिसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. अगर आप आम लोगों, सामाजिक मुद्दों और प्रांसगिक विषयों पर फिल्म बनाना चाहते हैं तो इसके लिए बहुत कुछ करना पड़ेगा, लेकिन वहीं अगर आप सिर्फ पैसा कमाने के लिए फिल्म बनाना चाहते हैं, तो फिर आप कुछ भी कर सकते हैं. व्यावसायिक फिल्मों में यह बात देखने को मिलती है."
ऐसे समय में, जब देश में लोगों से देशप्रेम व देशभक्ति का सबूत मांगा जा रहा है, क्या आपको लगता है कि देश में आपसी सौहार्द और भाईचारे की भावना में कमी आई है, उन्होंने कहा, "मुझे बिलकुल नहीं लगता है कि देश में ऐसा माहौल है, बल्कि यह सब हमें टेलीविजन चैनलों और अखबारों पर ही देखने को मिलता है. निजी जीवन में किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं है और जो थोड़ी-बहुत घटनाएं हो रही हैं, वह हर दौर की सरकार के समय में हुई हैं. आदिल ने कहा, "भारत में हर धर्म, भाषा और जाति के लोग रहते हैं. यहां विविधता है, जिसका हमें जश्न मनाना चाहिए, संकीर्णता से ऊपर उठना चाहिए."
इस फिल्म की ऐसी कोई एक खास बात है, जिसने आपको इसे करने को प्रेरित किया? इस सवाल पर उन्होंने कहा, "इस फिल्म को करने के पीछे एक खास बात है और वह है मृत्यु. मृत्यु को लेकर हर किसी को अज्ञानता है, वह बस केवल डरते हैं. इसके बारे में चर्चा नहीं की जाती. हम मान लेते हैं कि हम हजारों साल जीएंगे और उसी अनुसार अपना जीवन जीते जाते हैं, जबकि मृत्यु का कोई भरोसा नहीं होता है. "
आदिल दार्शनिक अंदाज में बोले, "अगर आप मानकर चलते हैं कि आपका यह पल आखिरी पल है तो आप इस पल में अपने सबसे महत्वपूर्ण कामों को पूरा करेंगे. हमने इस फिल्म में बताया है कि अपने कल से ज्यादा आज पर ध्यान देना चाहिए.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
आदिल ने कहा, "यह फिल्म दर्शकों को संपूर्ण मनोरंजन के साथ संदेश भी देगी. हमें नहीं पता कि कल क्या होगा, लेकिन हम कल की चिंता में अपने आज को भूल जाते हैं, इस फिल्म में लोगों को अपने वर्तमान को हंसते हुए खुलकर जीने का संदेश दिया गया हैं." किरदार के चुनाव के पीछे का कारण पूछे जाने पर आदिल ने बताया, "मुझे फिल्म का किरदार बहुत पसंद आया. यह एक मध्यमवर्गीय परिवार का शख्स है, जो अपनी रोज-मर्रा के कामों में उलझा रहता है, एक दिन अचानक उसका पिता उसे कहता है कि उनका अंतिम समय आ गया है और वह काशी जाना चाहते हैं, तो न चाहते हुए भी वह सब काम छोड़कर उनके साथ जाता है."
आदिल कहते हैं, "मुझे ऐसा लगता है कि ज्यादातर परिवारों में बेटे और बाप की बीच अक्सर कम संवाद होता है. आप फिल्म में देखेंगे कि जब ये दोनों काशी में रहते हैं तो इनके बीच कई तरह की बातें होती हैं." आदिल से जब पूछा गया कि क्या वह व्यावसायिक फिल्मों के दौर से खुश हैं, तो उन्होंने कहा, "फिल्म बनाना एक कला है, जिसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. अगर आप आम लोगों, सामाजिक मुद्दों और प्रांसगिक विषयों पर फिल्म बनाना चाहते हैं तो इसके लिए बहुत कुछ करना पड़ेगा, लेकिन वहीं अगर आप सिर्फ पैसा कमाने के लिए फिल्म बनाना चाहते हैं, तो फिर आप कुछ भी कर सकते हैं. व्यावसायिक फिल्मों में यह बात देखने को मिलती है."
ऐसे समय में, जब देश में लोगों से देशप्रेम व देशभक्ति का सबूत मांगा जा रहा है, क्या आपको लगता है कि देश में आपसी सौहार्द और भाईचारे की भावना में कमी आई है, उन्होंने कहा, "मुझे बिलकुल नहीं लगता है कि देश में ऐसा माहौल है, बल्कि यह सब हमें टेलीविजन चैनलों और अखबारों पर ही देखने को मिलता है. निजी जीवन में किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं है और जो थोड़ी-बहुत घटनाएं हो रही हैं, वह हर दौर की सरकार के समय में हुई हैं. आदिल ने कहा, "भारत में हर धर्म, भाषा और जाति के लोग रहते हैं. यहां विविधता है, जिसका हमें जश्न मनाना चाहिए, संकीर्णता से ऊपर उठना चाहिए."
इस फिल्म की ऐसी कोई एक खास बात है, जिसने आपको इसे करने को प्रेरित किया? इस सवाल पर उन्होंने कहा, "इस फिल्म को करने के पीछे एक खास बात है और वह है मृत्यु. मृत्यु को लेकर हर किसी को अज्ञानता है, वह बस केवल डरते हैं. इसके बारे में चर्चा नहीं की जाती. हम मान लेते हैं कि हम हजारों साल जीएंगे और उसी अनुसार अपना जीवन जीते जाते हैं, जबकि मृत्यु का कोई भरोसा नहीं होता है. "
आदिल दार्शनिक अंदाज में बोले, "अगर आप मानकर चलते हैं कि आपका यह पल आखिरी पल है तो आप इस पल में अपने सबसे महत्वपूर्ण कामों को पूरा करेंगे. हमने इस फिल्म में बताया है कि अपने कल से ज्यादा आज पर ध्यान देना चाहिए.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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