पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नागपुर में संघ के मुख्यालय में जाने और वहां पर संघ के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को भाषण देने के फैसले पर हर जगह चर्चा हो रही है. गुरुवार की शाम को उन्होंने जो भाषण दिया उसका हर कोई अपने-अपने हिसाब से मायने निकाल रहा है. इससे पहले पूरी कांग्रेस असहज नजर आ रही थी. यहां तक कि उनकी बेटी और कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि उनका (डॉ.मुखर्जी) भाषण किसी को याद नहीं रहेगा हां, उनकी तस्वीर का इस्तेमाल जरूर किया जाएगा. लेकिन कुशल राजनेता मुखर्जी बिना किसी दबाव में आए संघ के कार्यक्रम में गए और अपने 'उच्चस्तरीय' भाषण के जरिये संघ को उसी के मच पर कई नसीहतें दें डालीं. प्रणब मुखर्जी अपना भाषण अंग्रेजी में दे रहे थे, मगर बीच-बीच में वह अपनी मातृभाषा बांग्ला के मुहावरों का इस्तेमाल भी कर रहे थे. इससे पहले डॉ. नुखर्जी ने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को भारत माता का सच्चा सपूत भी कहा. यह बात उन्होंने विजिटर डायरी में लिखी है.
डॉ. प्रणब मुखर्जी के भाषण की 10 बड़ी बातें
- हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को अपनी विचारधारा का केंद्र मानने वाले संघ के मंच पर पूर्व राष्ट्रपति ने सरल शब्दों में भारत की बहुलतावादी संस्कृति का बखान किया.
- आरएसएस काडर को बताया कि राष्ट्र की आत्मा बहुलवाद और पंथनिरपेक्षवाद में बसती है. प्रणब मुखर्जी ने प्रतिस्पर्धी हितों में संतुलन बनाने के लिए बातचीत का मार्ग अपनाने की जरूरत बताई.
- उन्होंने साफतौर पर कहा कि घृणा से राष्ट्रवाद कमजोर होता है और असहिष्णुता से राष्ट्र की पहचान क्षीण पड़ जाएगी.
- उन्होंने कहा, 'सार्वजनिक संवाद में भिन्न मतों को स्वीकार किया जाना चाहिए.'
- सांसद व प्रशासक के रूप में 50 साल के अपने राजनीतिक जीवन की कुछ सच्चाइयों को साझा करते हुए प्रणब ने कहा, 'मैंने महसूस किया है कि भारत बहुलतावाद और सहिष्णुता में बसता है.'
- उन्होंने कहा, 'हमारे समाज की यह बहुलता सदियों से पैदा हुए विचारों से घुलमिल बनी है. पंथनिरपेक्षता और समावेशन हमारे लिए विश्वास का विषय है. यह हमारी मिश्रित संस्कृति है जिससे हमारा एक राष्ट्र बना है.'
- महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के दर्शनों की याद दिलाते हुए मुखर्जी ने कहा कि राष्ट्रीयता एक भाषा, एक धर्म और एक शत्रु का बोध नहीं कराती है.
- उन्होंने कहा कि यह 1.3 अरब लोगों के शाश्वत एक सार्वभौमिकतावाद है जो अपने दैनिक जीवन में 122 भाषाओं और 1,600 बोलियों का इस्तेमाल करते हैं.
- वे सात प्रमुख धर्मो का पालन करते हैं और तीन प्रमुख नस्लों से आते हैं और एक व्यवस्था से जुड़े हैं.
- उनका एक झंडा है. साथ ही भारतीयता उनकी एक पहचान है और उनका कोई शत्रु नहीं है. यही भारत को विविधता में एकता की पहचान दिलाता है."
इनपुट : आईएनएस से भी