
निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सरकार को सिर्फ अपरिहार्य परिस्थितियों में ही अध्यादेश लाना चाहिए.
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कहा - सिर्फ अपरिहार्य परिस्थितियों में ही अध्यादेश का इस्तेमाल होना चाहिए
संसद के सेंट्रल हॉल में सांसदों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को औपचारिक व
इससे पहले शनिवार को पीएम मोदी ने विदाई भोज दिया था
इससे पहले रविवार को संसद के सेंट्रल हॉल में देश के सांसदों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को औपचारिक विदाई दी. इससे पहले शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके सम्मान में विदाई भोज दिया था. रविवार को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में आयोजित समारोह में उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संसद के दोनों सदनों के सदस्य उपस्थित थे.
25 जुलाई को राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हो रहे प्रणब मुखर्जी ने जोर देकर कहा कि अध्यादेश का रास्ता सिर्फ ऐसे मामलों में चुनना चाहिए, जब विधेयक संसद में पेश किया जा चुका हो या संसद की किसी समिति ने उस पर चर्चा की हो.
मुखर्जी ने कहा, "अगर कोई मुद्दा बेहद अहम लग रहा हो तो संबंधित समिति को परिस्थिति से अवगत कराना चाहिए और समिति से तय समयसीमा के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहना चाहिए."
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उल्लेखनीय है कि अध्यादेश जारी किए जाने के छह महीने तक इसकी वैधता बनी रहती है और उसके बाद यह स्वत: रद्द हो जाता है. सरकार को इसके बाद या तो इसकी जगह कानून पारित करना होता है या फिर से अध्यादेश जारी करना होता है.
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अन्य कई अध्यादेशों पर सरकार की किरकिरी हो चुकी है. भूमि अध्यादेश पर जमकर बवाल हुआ था जिसके बाद सरकार ने उसे वापस ले लिया था.
(इनपुट आईएएनएस से)
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