
मामले से जुड़ी अहम जानकारियां :
बेलोयार्स्क एटमी प्लांट दुनिया का इकलौता फास्ट ब्रीडर रिएक्टर है. यह प्लांट करीब 20 वर्ष में बनकर तैयार हुआ और अक्टूबर, 2016 से इसमें उत्पादन शुरू हुआ. इस रिएक्टर से 800 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन होता है. देखें वीडियो रिपोर्ट
फास्ट ब्रीडर रिएक्टर जितने ईंधन की खपत करता है, उससे अधिक मात्रा में उसका उत्पादन करता है. विशेषज्ञों के मुताबिक यह अन्य रिएक्टरों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित माना जाता है, इसलिए हादसे की आशंका काफी कम रहती है.
हालांकि यह तकनीक अभी मुख्यधारा में नहीं आई है, लेकिन उम्मीद है कि नाभिकीय कचरे के बढ़ते भंडार के चलते आने वाले दशकों में यह तकनीक जोर पकड़ेगी.
पारंपरिक न्यूक्लियर रिएक्टरों के सह-उत्पाद के रूप में प्लूटोनियम एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. 1,000 मेगावाट क्षमता वाले रिएक्टर साल में 27 टन प्रयुक्त ईंधन पैदा करता है.
इस रेडियोएक्टिव तत्व को प्राकृतिक रूप से खत्म होने में 10 लाख साल से भी ज्यादा का वक्त लगता है. यह परमाणु बम का मुख्य कच्चा माल है, इसलिए आतंकी संगठनों द्वारा इसके चुराए जाने का खतरा भी है.
इसी वजह से पारंपरिक रिएक्टरों में इसकी सुरक्षा पर दुनिया को अरबों डॉलर का खर्च करना पड़ रहा है.
फास्ट ब्रीडर रिएक्टर में प्लूटोनियम का प्रयोग होता है और यूरेनियम अपशिष्ट होता है, जिसका किसी न्यूक्लियर रिएक्टर में इस्तेमाल तो नहीं होता है, लेकिन इसे दोबारा इस्तेमाल लायक बनाया जाता है.
फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के मामले में रूस ग्लोबल लीडर है. भारत दूसरे नंबर पर है. चीन भी इसमें आगे बढ़ने की होड़ में शामिल है. अमेरिका पूरी तरह से पारंपरिक एटमी रिएक्टरों पर निर्भर है.
भारत का खुद का प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर इस साल शुरू होने वाला है. चेन्नई के पास कलपक्कम में स्थित 500 मेगावाट का रिएक्टर इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च के 15 सालों की अथक मेहनत के बाद तैयार हुआ था.
पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत को परमाणु तकनीक देने पर पाबंदी लगा दी गई थी. लेकिन भारत साल 2032 तक अपनी न्यूक्लिर क्षमता को तीन गुणा बढ़ाने की उम्मीद कर रहा है. हाल ही में कैबिनेट ने 70,000 करोड़ रुपये की लागत से 10 नए रिएक्टरों के निर्माण को मंजूरी दी.