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Brexit Results: क्या है ये ब्रेक्ज़िट का मामला, समझना है तो पढ़िए यह छोटी सी गाइड..

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ब्रिटेन ने ईयू को छोड़ने का फैसला लिया है (Reuters)

शुक्रवार को फैसला Brexit के पक्ष में आया है यानि ब्रिटेन की जनता ने यूरोपियन यूनियन से एक्ज़िट करने का फैसला लिया है। लेकिन ऐसी क्या समस्याएं हैं कि ब्रिटेन की जनता ने इस सालों पुराने संगठन से दूरी बनाने का फैसला किया..

कुछ बिंदुओं में समझें ब्रेक्ज़िट का यह पूरा मसला दरअसल है क्या -

  1. पिछले कुछ दिनों से आपने Rexit शब्द को कई बार अखबारों में पढ़ा होगा। जानते भी होंगे कि रघुराम राजन की RBI के दूसरे कार्यकाल को नहीं जारी करने की घोषणा के बाद यह शब्द आया जो रघु के R और अंग्रेज़ी शब्द Exit को मिलाकर बनाया गया है। यह शब्द दरअसल यूरोप के Brexit से प्रेरित है जिसको लेकर आज एक अहम फैसला ब्रिटेन की जनता ने लिया है। वैसे ब्रेक्ज़िट से भी पहले एक शब्द आया था ग्रेक्ज़िट (Grexit) जो ग्रीस के यूरोज़ोन छोड़ने की उहापोह के दौरान लाया गया था।
  2. ब्रिटेन की जनता ने रेफ्रेंडम के ज़रिए यह फैसला लिया है कि ब्रिटेन को अब ईयू का हिस्सा बनकर नहीं  रहना है। रेफ्रेंडम दरअसल वोट करने का एक तरीका है जिसमें किसी भी अहम सवाल का जवाब हां या ना में देने के लिए वोटिंग की जाती है। वोटिंग के लिए पात्रता रखने वाले सभी लोग इसमें हिस्सा ले सकते हैं और जिस भी खेमे को आधे से ज्यादा वोट मिलते हैं, फैसला उसके पक्ष में आता है।
  3. यह यूरोपियन यूनियन है क्या? यह 28 यूरोपियन देशों का एक समूह है जिसकी एक दूसरे से राजनीतिक और आर्थिक साझेदारी है। इसकी शुरूआत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आर्थिक सहयोग के उद्देश्य से की गई थी। ऐसा समझा जाता रहा है कि जो देश आपस में व्यवसायिक तौर पर साझेदारी रखते हैं, वह एक दूसरे के खिलाफ युद्ध से बचते हैं। इस समूह के बनने के बाद इसके सदस्य-देशों की जनता और सामान की आवाजाही बिना किसी रोकटोक के होती है। यही वजह है कि जब आप यूरोप घूमने जाते हैं तो ट्रेन पकड़कर एक देश से पड़ोसी देश जा सकते हैं। इस समूह के 19 देशों के बीच व्यापार के लिए यूरो मुद्रा चलती है। इसके अलावा पर्यावरण, परिवहन, ग्राहक अधिकारों को लेकर भी एक ही नियम लागू रहता है।
  4. अब सवाल यह है कि ब्रिटेन इस कई साल पुरानी यूरोपियन यूनियन से क्यों अलग होना चाहता था? वोटिंग से जो फैसला सामने आया है उससे यही कहा जा सकता है कि 52 प्रतिशत जनता चाहती थी कि ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग हो जाना चाहिए। इसकी कई वजहें हैं, बीबीसी द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक ऐसा माना जाता रहा है कि ईयू के नियमों से खुद को बांधे जाने की वजह से ब्रिटेन कई मामलों में पीछे रह गया था। ब्रिटेन का आरोप है कि ईयू ने व्यापार से जुड़े कई सख्त नियम खड़े कर दिए थे और कई करोड़ पाउंड की सालाना सदस्यता फीस देने के बदले ब्रिटेन को कुछ ख़ास हासिल नहीं हो रहा था।
  5. ब्रिटेन के लिए ईयू छोड़ने की कई वजहों में से एक यह भी थी कि वह अपनी सीमाओं पर पूरी तरह अपना अधिकार चाहता था। साथ ही वह अपने देश में बाहर से आकर काम करने वाले लोगों की संख्या भी कम करना चाहता था। गौरतलब है कि ईयू के तहत सदस्य-देशों की जनता के एक से दूसरे देश में आने जाने पर कोई रोक नहीं लगा सकता। फैसले से लगता है कि ब्रिटेन की जनता इस विचार से बहुत खुश नहीं है और वह चाहती है कि जीवन-यापन के लिए बाहर से आए लोगों की संख्या कम से कम हो सके।
  6. इस वक्त यूरोप के कई देशों में शरणार्थियों के आगमन की समस्या भी एक चिंता का विषय बनी हुई है। 2015 में सीरिया, अफगानिस्तान और इराक़ जैसे देशों से कई लाख शरणार्थियों ने यूरोप के देशों में शरण ली है। ऐसे में यूरोपियन यूनियन के सदस्य भी इस संकट से अछूते नहीं हैं। वैसे भी काम और बेहतर जीवन के सिलसिले में कई एशियाई यूरोप में ब्रिटेन को ही बसने के लिए मुनासिब जगह मानते हैं, ऊपर से शरणार्थियों के आवेदनों से भी ब्रिटेन की जनता के मन में यह डर बैठ गया है कि उनके हिस्से की नौकरियां और कई फायदे बाहर से आने वाले लोगों के साथ उन्हें बांटने पड़ेंगे। ऐसे में वह ईयू से अलग होकर प्रवासियों को लेकर भी अपने खुद के नियम तैयार करने के पक्ष में है।
  7. जहां तक व्यापार की बात है तो कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ईयू के साथ रहने पर ब्रिटेन को व्यवसाय में ज्यादा फायदा होता क्योंकि ऐसे में पैसे के साथ साथ लोगों और सामान को एक देश से दूसरे देश तक पहुंचाने में आसानी होती। वहीं कुछ का कहना है कि अलग होने के बाद अब ब्रिटेन उन 28 देशों का हिस्सा बनकर नहीं, अपने दम पर और अपनी शर्तों पर व्यापार कर पाएगा। वहीं पाउंड को लेकर आधिकारिक तौर पर अभी कुछ साफ नहीं हो पाया है लेकिन जनवरी में प्रधानमंत्री केमरन ने यह साफ किया था कि ब्रिटेन कभी भी यूरो को नहीं अपनाएगा।

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