फाइल फोटो
आन्ध्र प्रदेश में स्थित तिरूपति बालाजी मंदिर देश के सबसे प्रसिद्ध और अति-समृद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। तिरूपति बालाजी को तिरूमाला वेंकटेश्वर भी कहा जाता है।
यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर इस राज्य की तिरूमाला पहाड़ियों की सातवीं चोटी पर स्थापित है। वर्तमान में तिरूपति बालाजी की जो विग्रह (मूर्ति) दिखाई देती है, उसकी आंखें कर्पूर (कपूर) के तिलक से ढंकी हुई हैं और यह जिस स्वर्ण-गुम्बद के नीचे स्थापित है, उसे 'आनंद निलय दिव्य विमान' कहा जाता है।
आइये जानते हैं, भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले प्रभु व्यंकटेश्वर बालाजी के बारे में कुछ रोचक और रहस्यमयी बातें।
आखिर क्या है इनका रहस्य...
-- 'आनंद निलय दिव्य विमान' में स्थापित तिरूपति बालाजी के विग्रह पर 'पचाई कर्पूरम' चढ़ाने की परंपरा है। यह कपूर से मिलकर बना एक विशेष आलेप है। कहते हैं अगर इस आलेप को किसी साधारण पत्थर पर चढाया जाता है, वो पत्थर कुछ ही देर में चटक जाता, लेकिन काले पत्थर से बनी तिरूपति बालाजी के विग्रह आजतक इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
-- कहते हैं कि तिरूपति मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति के पर लगे हुए बाल उनके वास्तविक बाल हैं। आश्चर्यजनक यह है कि ये बाल हमेशा मुलायम, सुलझे हुए और चमकदार रहते हैं।
-- तिरूपति बालाजी के विग्रह के पिछले हिस्से में हमेशा नमी बनी रहती है। लोगों का मानना है कि इस विग्रह के पीछे से ध्यान लगाकर सुनने पर समुद्र की लहरों की आवाज आती है। ऐसा क्यों होता है, यह किसी आजतक ज्ञात नहीं हो पाया है।
-- भगवान तिरूपति बालाजी की ठोड़ी (ठुड्डी) में चंदन लगाने की परंपरा के बारे में अनुश्रुति है कि इसका संबंध इसी मंदिर के दायीं ओर रखी एक छड़ी से है। कहते हैं कि बचपन में इस छड़ी का प्रयोग भगवान को मारने में किया जाता था, लेकिन एकबार इस छड़ी से उनकी ठुड्डी में चोट लग गई। उनका यह चोट चंदन के आलेप से सही हुआ था। यही कारण है कि उनकी ठोड़ी में चन्दन का अभिषेक किया जाता है|
-- परम्परा के अनुसार, प्रत्येक वृहस्पतिवार को को भगवान तिरूपति बालाजी की विग्रह को सफेद चंदन से आलेपित किया जाता है। कहते हैं, जब इस लेप को हटाया जाता है तो विग्रह में देवी लक्ष्मी के चिन्ह बने हुए मिलते हैं।
-- तिरूपति बालाजी के मंदिर में चढाए गए पुष्प और तुलसी दल कभी भक्तों को वापस नहीं किए जाते हैं, बल्कि उन्हें इस मंदिर के परिसर में बने एक कूप (कुएं) में डाल दिया जाता है।
-- केवल यही नहीं, इस मंदिर में जो भी पुष्प, पुष्पमालाएं अर्पित की जाती हैं, उन्हें इस मंदिर के पुजारी बिना देखे पीछे फेंकते जाते हैं, क्योंकि मान्यता है कि उन्हें पीछे देख कर फेंकना अशुभ होता है।
-- तिरूपति बालाजी के मंदिर में हमेशा एक अखंड दीपक जलता रहता है। लेकिन यह किसी पता नहीं है कि यह दीपक कब प्रज्वलित किया गया था।
यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर इस राज्य की तिरूमाला पहाड़ियों की सातवीं चोटी पर स्थापित है। वर्तमान में तिरूपति बालाजी की जो विग्रह (मूर्ति) दिखाई देती है, उसकी आंखें कर्पूर (कपूर) के तिलक से ढंकी हुई हैं और यह जिस स्वर्ण-गुम्बद के नीचे स्थापित है, उसे 'आनंद निलय दिव्य विमान' कहा जाता है।
आइये जानते हैं, भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले प्रभु व्यंकटेश्वर बालाजी के बारे में कुछ रोचक और रहस्यमयी बातें।
आखिर क्या है इनका रहस्य...
-- 'आनंद निलय दिव्य विमान' में स्थापित तिरूपति बालाजी के विग्रह पर 'पचाई कर्पूरम' चढ़ाने की परंपरा है। यह कपूर से मिलकर बना एक विशेष आलेप है। कहते हैं अगर इस आलेप को किसी साधारण पत्थर पर चढाया जाता है, वो पत्थर कुछ ही देर में चटक जाता, लेकिन काले पत्थर से बनी तिरूपति बालाजी के विग्रह आजतक इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
-- कहते हैं कि तिरूपति मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति के पर लगे हुए बाल उनके वास्तविक बाल हैं। आश्चर्यजनक यह है कि ये बाल हमेशा मुलायम, सुलझे हुए और चमकदार रहते हैं।
-- तिरूपति बालाजी के विग्रह के पिछले हिस्से में हमेशा नमी बनी रहती है। लोगों का मानना है कि इस विग्रह के पीछे से ध्यान लगाकर सुनने पर समुद्र की लहरों की आवाज आती है। ऐसा क्यों होता है, यह किसी आजतक ज्ञात नहीं हो पाया है।
-- भगवान तिरूपति बालाजी की ठोड़ी (ठुड्डी) में चंदन लगाने की परंपरा के बारे में अनुश्रुति है कि इसका संबंध इसी मंदिर के दायीं ओर रखी एक छड़ी से है। कहते हैं कि बचपन में इस छड़ी का प्रयोग भगवान को मारने में किया जाता था, लेकिन एकबार इस छड़ी से उनकी ठुड्डी में चोट लग गई। उनका यह चोट चंदन के आलेप से सही हुआ था। यही कारण है कि उनकी ठोड़ी में चन्दन का अभिषेक किया जाता है|
-- परम्परा के अनुसार, प्रत्येक वृहस्पतिवार को को भगवान तिरूपति बालाजी की विग्रह को सफेद चंदन से आलेपित किया जाता है। कहते हैं, जब इस लेप को हटाया जाता है तो विग्रह में देवी लक्ष्मी के चिन्ह बने हुए मिलते हैं।
-- तिरूपति बालाजी के मंदिर में चढाए गए पुष्प और तुलसी दल कभी भक्तों को वापस नहीं किए जाते हैं, बल्कि उन्हें इस मंदिर के परिसर में बने एक कूप (कुएं) में डाल दिया जाता है।
-- केवल यही नहीं, इस मंदिर में जो भी पुष्प, पुष्पमालाएं अर्पित की जाती हैं, उन्हें इस मंदिर के पुजारी बिना देखे पीछे फेंकते जाते हैं, क्योंकि मान्यता है कि उन्हें पीछे देख कर फेंकना अशुभ होता है।
-- तिरूपति बालाजी के मंदिर में हमेशा एक अखंड दीपक जलता रहता है। लेकिन यह किसी पता नहीं है कि यह दीपक कब प्रज्वलित किया गया था।
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