क्यों हज यात्री शैतान को मारते हैं पत्थर
नई दिल्ली:
इस्लाम धर्म के 5 स्तंभों में से एक है हज. ऐसा माना जाता है कि हर मुस्लिम को जीवन में एक बार हज पर जाना चाहिए. इसी वजह से हज यात्रा का इतना महत्व होता है. जो लोग हज नहीं जा पाते वो वहां जाने वाले बंदों के हाथों अल्लाह को पैगाम भेजते हैं.
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ये यात्रा पांच दिनों की होती है. इहराम, तवाफ, सई, अराफात और मुजदलफा. तीसरे दिन बकरीद के बाद रमीजमारात पर पत्थर मारे जाते हैं. रमीजमारात एक ऐसी जगह है जहां तीन बड़े खम्भे हैं. इन्हीं खम्भों को लोग शैतान मानते हैं और उस पर कंकरी फेंकते हैं और इस रस्म के साथ ही हज पूरा हो जाता है.
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रमीजमारात पर पत्थर मारने के पीछे ऐसी मान्यता है कि एक बार अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से कुर्बानी में उनकी पसंदीदा चीज़ मांगी थी. हज़रत इब्राहिम को सबसे ज़्यादा प्यार अपने एकलौती औलाद इस्माइल से था. ये औलाद काफी बुढ़ापे में पैदा हुई थी.
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लेकिन अल्लाह का हुक्म मानकर वह अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए. हज़रत इब्राहिम जब अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने जा रहे थे तभी रास्ते में शैतान मिला और उसने कहा कि वह इस उम्र में क्यों अपने बेटे की क़र्बानी दे रहे हैं. उसके मरने के बाद बुढ़ापे में कौन आपकी देखभाल करेगा.
हज़रत इब्राहिम ये बात सुनकर सोच में पड़ गए और उनका कुर्बानी देने का मन हटने लगा. लेकिन कुछ देर बाद वह संभले और कुर्बानी के लिए तैयार हो गए.
हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. कुर्बानी देने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को सामने जिन्दा खड़ा पाया और उसकी कुर्बानी मेमने की हुई. इसी वजह से बकरीद मनाई जाता है, बकरों और मेमनों की बलि दी जाती है.
इसी मान्यता के चलते मुसलमान हज के आखिरी दिन बकरीद पर कुर्बानी देने के बाद रमीजमारात जाकर उस शैतान को पत्थर मारते हैं जिसने हज़रत इब्राहिम को अल्लाह के आदेश से भटकाने की कोशिश की थी.
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ये यात्रा पांच दिनों की होती है. इहराम, तवाफ, सई, अराफात और मुजदलफा. तीसरे दिन बकरीद के बाद रमीजमारात पर पत्थर मारे जाते हैं. रमीजमारात एक ऐसी जगह है जहां तीन बड़े खम्भे हैं. इन्हीं खम्भों को लोग शैतान मानते हैं और उस पर कंकरी फेंकते हैं और इस रस्म के साथ ही हज पूरा हो जाता है.
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रमीजमारात पर पत्थर मारने के पीछे ऐसी मान्यता है कि एक बार अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से कुर्बानी में उनकी पसंदीदा चीज़ मांगी थी. हज़रत इब्राहिम को सबसे ज़्यादा प्यार अपने एकलौती औलाद इस्माइल से था. ये औलाद काफी बुढ़ापे में पैदा हुई थी.
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लेकिन अल्लाह का हुक्म मानकर वह अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए. हज़रत इब्राहिम जब अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने जा रहे थे तभी रास्ते में शैतान मिला और उसने कहा कि वह इस उम्र में क्यों अपने बेटे की क़र्बानी दे रहे हैं. उसके मरने के बाद बुढ़ापे में कौन आपकी देखभाल करेगा.
हज़रत इब्राहिम ये बात सुनकर सोच में पड़ गए और उनका कुर्बानी देने का मन हटने लगा. लेकिन कुछ देर बाद वह संभले और कुर्बानी के लिए तैयार हो गए.
हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. कुर्बानी देने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को सामने जिन्दा खड़ा पाया और उसकी कुर्बानी मेमने की हुई. इसी वजह से बकरीद मनाई जाता है, बकरों और मेमनों की बलि दी जाती है.
इसी मान्यता के चलते मुसलमान हज के आखिरी दिन बकरीद पर कुर्बानी देने के बाद रमीजमारात जाकर उस शैतान को पत्थर मारते हैं जिसने हज़रत इब्राहिम को अल्लाह के आदेश से भटकाने की कोशिश की थी.
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