
- जल को सभी प्रमुख धर्मों में अत्यंत पवित्र माना गया है और धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग किया जाता है
- गंगा जल को वेदों में देवताओं के समान पूजनीय और अमृत के समान शुद्ध माना जाता है
- इस्लाम धर्म में आब-ए-जमजम को सबसे पवित्र जल माना जाता है और हज यात्रा में इसका विशेष महत्व है
Holy water in different religions: जिस जल को जीवन कहा गया है, उसे हिंदू समेत सभी धर्मों में बहुत पवित्र माना गया है. आजकल इसी पवित्र जल को लेकर प्रतिदिन कांवड़िए नंगे पैर कई किलोमीटर लंबी कठिन यात्रा कर रहे हैं ताकि वे गंगाधर यानि भगवान शिव का जलाभिषेक (Jalabhishek) कर सकें. आस्था (Faith) से जुड़े गंगा जल की बात करें तो यह एक सनातनी व्यक्ति के जन्म से लेकर जीवन के अंत तक जुड़ा रहता है. जीवन की प्रमुख आवश्यकता के अलावा जल (Water) की धार्मिक महत्ता की बात करें तो लगभग सभी धर्मों में इसे अत्यंत ही पूजनीय और पवित्र मानते हुए धार्मिक कार्यों में प्रयोग लाया जाता है. समय कोई भी रहा हो, कभी भी इसकी महत्ता घटी नहीं बल्कि दिनों-दिन बढ़ती ही गई है. आइए प्रमुख धर्मों में जल की इसी महत्ता को को विस्तार से जानते हैं.
गंगा का अमृत जल (Gangajal)
वेदों (Veda) में जिस जल को आप: देवता कहा गया है और जो सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा करने वाला माना जाता है, उसे सनातन पंरपरा में बहुत ज्यादा पूजनीय माना गया है. यही कारण है कि सनातन परंपरा से जुड़ा सबसे बड़ा धार्मिक-आध्यात्मिक मेला गंगा के किनारे ही लगता है. यदि बात करें गंगा जल की तो सामान्य प्रकार के जल के मुकाबले उसकी महत्ता कहीं ज्यादा मानी गई है क्योंकि इसे अमृत और औषधियों से युक्त माना गया है. जिसके स्पर्श ही नहीं दर्शन मात्र से तमाम तरह के दोष दूर हो जाते हैं.

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अखंड दयाधाम, वृंदावन के प्रमुख स्वामी भास्करानंद कहते हैं कि पुराणों में गंगा जी के प्राकट्य को लेकर कथा आती है कि जब भगवान श्री विष्णु ने वामन का अवतार लिया तो ब्रह्मा जी उनका चरण धोया था. इसके बाद कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को श्राप दिया और बाद में उन्होंने इसकी मुक्ति का उपाय गंगाजल से बताया. इसके बाद भागीरथ प्रयास के बाद गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ. महाभारत के अनुसार हजारों चांद्रायण व्रत करने के बाद मिलने वाले पुण्यफल से कहीं ज्यादा गंगाजल में तन और मन को शुद्ध करते हुए पुण्य प्रदान की शक्ति निहित है. गंगाजल की इसी पवित्रता के कारण हमारे यहां सभी अनुष्ठानों में गंगा जल का प्रयोग होता है. नदियों में सबसे श्रेष्ठ गंगा को माना गया है.
आब-ए-जमजम को लेकर क्या कहता है इस्लाम
इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली के अनुसार पर्यावरण से जुड़ी तमाम चीजों को लेकर इस्लाम धर्म (Islam Religion) में बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है. साथ ही साथ उसको संरक्षित करने को बहुत बड़ा धार्मिक कार्य माना गया है. ये और बात है कि लोग नमाज, जकात आदि को हो मुख्य रूप से महत्ता देते हैं. इन्हीं चीजों में पवित्र जल आब-ए-जमजम भी आता है.
मौलाना खालिद रशीद के अनुसर पैगंबर हजरत इब्राहिम की पत्नी का नाम था बीबी हाजरा था. एक बार उनके लड़के हजरत इस्माइल रेगिस्तान में प्यास से तड़पते हुए पैर की एड़ियां जमीन पर रगड़ रहे थे, जबकि बीबी हाजरा उनके लिए पानी को तलाशने में जुटी हुई थीं. मान्यता है कि इस्माइल जिस स्थान पर अपनी एड़ी रगड़ रहे थे, उसी स्थान पर अचानक से पानी का फव्वारा फूट पड़ा और बाद में पवित्र आब-ए-जमजम (Aab e Zamzam) के कुएं के रूप में स्थापित हुआ. इस्लॉम में इसे दुनिया का सबसे पवित्र जल माना जाता है.
यही कारण है कि जो कोई भी मुसलमान हज (Haj Yatra) के लिए जाता है, वह वहां पर इसे जरूर पीता है और अपने घर के लिए भी लेकर आता है. गंगाजल की तरह इसे लेकर भी मान्यता है कि यदि आपके पास थोड़ा सा भी आब-ए-जमजम है तो उसे आप दूसरे पानी में मिलाकर उसे उसी तरह पवित्र बना कर प्रयोग में ला सकते हैं. सिर्फ आब-ए-जमजम ही नहीं इस्लाम में सबसे बड़ी इबादत मानी जाने वाली नमाज को पढ़ने से पहले भी वजू के लिए जल का प्रयोग किया जाता है. मौलाना खालिद रशीद बताते हैं कि वजू हमेशा बहते हुए पाक-साफ पानी से करने की मान्यता है. इसमें भी सख्त हिदायत है कि यदि आप नदी किनारे भी वजू कर रहे हैं तो आपको जल का दुरुपयोग नहीं करना है.
पाप से मुक्ति दिलाने वाली बपतिस्मा
फादर जॉन रोशन के अनुसार तमाम धर्मों की तरह ईसाई धर्म (christianity religion) में भी जल को अत्यंत ही पवित्र माना गया है. बाइबल के अनुसार प्रुभ ईसा मसीह (Jesus Christ) ने भी बपतिस्मा ग्रहण किया था. इसे ईसाई धर्म में अत्यंत ही पवित्र क्रिया माना गया है. इसमें जल के द्वारा शुद्धिकरण होता है. इस क्रिया के लिए सबसे पहले ईश्वर का आशीर्वाद पाने के लिए विशेष प्रार्थना की जाती है. फादर जॉन के अनुसार प्रत्येक धर्म में कोई न कोई पवित्र आत्मा होती है जो उस जल को शुद्ध और पवित्र करती है.

बपतिस्मा (Baptism in the bible) की प्रक्रिया में किसी बच्चा हो या फिर कोई बड़ा उस पर यह शुद्ध जल तीन बार डाला जाता है. इस पवित्र जल को डालते समय फादर बोलते हैं कि 'पिता-पुत्र के नाम पर मैं तुम्हें बपतिस्मा देता हूं.' फादर जॉन के अनुसार भले ही यह बाहरी शुद्धिकरण का प्रतीक है, लेकिन इसके भीतर एक आंतरिक गुण होता है, जिसे हम नहीं देख पाते हैं, उसे सिर्फ अनुभव किया जा सकता है. यह हमारी आस्था से जुड़ा हुआ होता है. पवित्र जल के जरिए की जाने वाली बपतिस्मा की प्रक्रिया मुख्य रूप से पाप की प्रवृत्तियों से छुटकारा दिलाने और तमाम तरह की बुराईयों से लड़ने की ताकत देने वाली होती है.

पवित्र सरोवर का जल
हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्म की तरह सिख धर्म (sikh religion) में भी जल को अत्यधिक पवित्र माना गया है. सिखी परंपरा से जुड़े हुए अधिकांश गुरुद्वारों में आपको पवित्र सरोवर का जल मिल जाएगा. देश की राजधानी दिल्ली में गुरुद्वारा नानक प्याउ है, जिसके बारे में मान्यता है कि जब गुरुनानक जी (Guru Nanak) पहली बार दिल्ली आए तो लोगों ने उन्हें खारे पानी की समस्या से अवगत कराया. जिसके बाद उन्होंने एक विशेष स्थान पर लोगों को कुंआ खोदने को कहा जहां पर लोगों को मीठा पानी को मिला. इसी तरह गुरु गोविंद सिंह जी (Guru Gobind Singh) ने भी पंच प्यारों के लिए इसी पवित्र जल से ही अमृत (Amrit) तैयार किया था.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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