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जगन्नाथ रथ यात्रा में 'छेरा पहरा' की रस्म क्या है, इसमें क्या किया जाता है, जानिए यहां

इस रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता आती है. इससे मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही नकारात्मकता का अंत होता है और सुख-समृद्धि भी आती है. 

जगन्नाथ रथ यात्रा में 'छेरा पहरा' की रस्म क्या है, इसमें क्या किया जाता है, जानिए यहां
सोने की झाड़ू से सफाई करके भक्त भगवान के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करते हैं.

Chhera pehra kya hota hai: भगवान जगन्नाथ का एकांतवास आज समाप्त हो रहा है. अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं. ऐसे में कल यानी 27 जून को जगन्नाथ जी रथ पर अपने भाई-बहन के साथ सवार होकर भक्तों को भव्य दर्शन देंगे. जिसका इंतजार भक्त बेसब्री से कर रहे हैं. देश-विदेश से भक्त उड़ीसा के पुरी में भक्त पहुंचने शुरू हो गए हैं. कल से शुरू होने वाली 9 दिन की जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान कई तरह की रस्म निभाई जाती हैं, जिसमें पहले दिन छेरा रस्म की जाती है. इस रस्म में पुरी के गजपति राजा, जो भगवान के पहले सेवक माने जाते हैं सोने की झाड़ू से रथों के आगे झाड़ू लगाते हैं और चंदन से मिश्रित जल रास्ते में छिड़कते हैं. इसके बाद रथ को भक्त खींचना शुरू करते हैं.

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क्या होता है छेरा रस्म का महत्व - What is the importance of Chhera ritual

यह रस्म इस बात का प्रतीक होती है कि भगवान की नजर में हर कोई एक समान है. चाहे राजा हो या आम जनता ईश्वर सबको एक नजर से देखता है. 

सोने की झाड़ू से सफाई करके भक्त भगवान के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करते हैं. छेरा की रस्म धार्मिक, सामाजिक महत्व रखने के साथ इस यात्रा के गौरवशाली इतिहास को भी दर्शाती है. 

इस रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता आती है. इससे मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही नकारात्मकता का अंत होता है. यह सुख-समृद्धि भी दिलाती है. यही कारण इस धार्मिक यात्रा में लाखों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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