Vaikuntha Chaturdashi 2022: कब है बैकुंठ चतुर्दशी, यहां जानें तिथि, पूजा मुहूर्त और विधि

Vaikuntha Chaturdashi 2022: कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है. इस साल बैकुंठ चतुर्दशी 07 नवंबर को मनाई जाएगी.

Vaikuntha Chaturdashi 2022: कब है बैकुंठ चतुर्दशी, यहां जानें तिथि, पूजा मुहूर्त और विधि

Vaikuntha Chaturdashi 2022: बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा होती है.

Vaikuntha Chaturdashi 2022: कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी कहते हैं. इस साल बैकुंठ चतुर्दशी 07 नवंबर, 2022 को पड़ रही है. हिंदू पंचांग के अनसार आमतौर पर बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक पूर्णिमा से एक दि पहले पड़ती है. लेकिन कभी-कभी इसकी तिथि में अंतर भी आ जाता है. बहरहाल इस बार कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाएगी. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा की जाती है. इसके अलावा इस दिन विधि-विधान से इन दोनों देवताओं की पूजा करने से बैकुंठ की प्राप्त होती है. वहीं कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है. आइए जानते हैं कि साल 2022 में बैकुंठ चतुर्दशी कब है, इसके लिए शुभ मुहूर्त क्या है इसका महत्व क्या है. 

बैकुंठ चतुर्दशी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त | Vaikuntha Chaturdashi 2022 Shubh Muhurat

बैकुंठ चतुर्दशी तिथि - रविवार, नवंबर 6, 2022 

चतुर्दशी तिथि आरंभ - नवंबर 06, 2022 को 04:28 पी एम 

चतुर्दशी तिथि समाप्त - नवंबर 07, 2022 को 04:15 पी एम 

बैकुंठ चतुर्दशी निशिता काल मुहूर्त- 11:39 पी एम से 12:31 ए एम, नवंबर 07

बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि | Vaikuntha Chaturdashi Puja Vidhi

सुबह स्नान आदि से निपटकर दिनभर व्रत रखें.

रात में भगवान श्री हरि विष्णु की 108 कमल पुष्पों से पूजा करें. 

इसके बाद भगवान शिव शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करें. 

पूजा में इस मंत्र का जाप करें- "विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्, वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम" पूरे दिन विष्णु और शिव जी के नाम का उच्चारण करें.

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व | Vaikuntha Chaturdashi Importance

कार्तिक माह के दौरान शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव के भक्तों के लिए भी पवित्र माना जाता है. दरअसल दोनों देवताओं की पूजा एक ही दिन की जाती है. आमतौर पर ऐसा बहुत कम होता है कि एक ही दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा का शुभ अवसर प्राप्त हो सके. वाराणसी के अधिकांश मंदिरों में बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है. यह देव दीवाली से एक दिन पहले आता है. वाराणसी के अलावा, बैकुंठ चतुर्दशी ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र के कई शहरों में भी मनाई जाती है.

शिव पुराण के अनुसार कार्तिक चतुर्दशी के पावन दिन भगवान विष्णु भगवान शिव की पूजा करने कीशी गए थे. भगवान विष्णु ने एक हजार कमल के साथ भगवान शिव की पूजा करने का संकल्प लिया. कमल के फूल चढ़ाते समय, भगवान विष्णु ने पाया कि हजारवां कमल गायब था. अपनी पूजा को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु, जिनकी आंखों की तुलना कमल से की जाती है, ने अपनी एक आंख निकालकर भगवान शिव को अर्पित कर दिया. भगवान विष्णु की इस भक्ति ने भगवान शिव को इतना प्रसन्न किया कि उन्होंने न केवल भगवान विष्णु की आंख को पुनर्स्थापित किया, बल्कि उन्होंने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र का उपहार भी दिया. जिसे भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली और पवित्र हथियारों में से एक माना गया है. वैकुंठ चतुर्दशी पर, निशिता के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है . भक्त भगवान विष्णु के हजार नामों, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हुए भगवान विष्णु को कमल के पुष्प से पूजा करते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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