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Ujjain Holi celebration: महाकाल के आंगन में प्रदोष काल में होगा होलिका दहन, भस्मारती में हर्बल गुलाल से खेलेंगे होली

Ujjain Holi celebration: भारतीय संस्कृति और संस्कारों में हर त्योहार का एक विशेष महत्व होता है. फाल्गुन मास में मनाया जाने वाला रंगों का पर्व होली भी इन्हीं में से एक है. जो खास बन जाता है जब महाकाल के दरबार में रंग और गुलाल की छठा बिखरती है.

Ujjain Holi celebration: महाकाल के आंगन में प्रदोष काल में होगा होलिका दहन, भस्मारती में हर्बल गुलाल से खेलेंगे होली
Holi 2025 : इस साल यह भव्य पर्व 13 मार्च को पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा.

Ujjain Holi celebration: विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर (Mahakaleshwar Holi Festival) में 13 मार्च को राजसी वैभव के साथ होली का त्योहार मनाया जाएगा. संध्या आरती के बाद प्रदोष काल में होलिका पूजन कर दहन (Holika Dahan 2025 Date) किया जाएगा. 14 मार्च को धुलेंडी के अवसर पर सुबह 4 बजे होने वाली भस्म आरती में पुजारी भगवान महाकाल के साथ हर्बल गुलाल से होली खेलेंगे. उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं. ज्योतिर्लिंग की पूजन परंपरा में (Bhasm Aarti Holi Ujjain) होली उत्सव का विशेष महत्व है. देशभर से सैकड़ों श्रद्धालु राजा की रंग रंगीली होली का दिव्य आनंद लेने मंदिर पहुंचते हैं. इस साल यह भव्य पर्व 13 मार्च को पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा.

होली कब है? 14 या 15 मार्च, जान लें सही तारीख और शुभ मुहूर्त

  • मंदिर परिसर में श्री ओंकारेश्वर मंदिर के सामने पुजारी और पुरोहित परिवार की ओर से होलिका तैयार की जाएगी.
  • शाम 7:30 बजे, भगवान महाकाल की संध्या आरती के बाद पुजारी वैदिक मंत्रोच्चार के साथ होलिका पूजन करेंगे.
  • इसके बाद होलिका दहन की परंपरा पूरी होगी.
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मंदिर समिति देगी हर्बल गुलाल (Holi Festival With Herbal Gulal In Temples)

  • परंपरा के अनुसार, 14 मार्च को होली उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा.
  • तड़के सुबह 4 बजे, भस्म आरती के दौरान पुजारी भगवान महाकाल को हर्बल गुलाल अर्पित करेंगे.
  • मंदिर समिति पुजारियों को नेचुरल प्रोडक्ट से बने हर्बल गुलाल देगी.
  • मंदिर समिति की ओर से होली उत्सव के लिए एक थाल भरकर गुलाल दिया जाता है.

ज्योतिषीय दृष्टिकोण: 13 मार्च को होली मनाना शास्त्र के अनुसार

  • ज्योतिष और धर्मशास्त्र के विद्वान 13 मार्च को होली मनाना शास्त्र सम्मत मान रहे हैं.
  • ज्योतिषाचार्य के अनुसार, 13 मार्च की सुबह 10:20 बजे तक चतुर्दशी तिथि रहेगी. इसके बाद पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और सिंह राशि में स्थित चंद्रमा की उपस्थिति में पूर्णिमा तिथि शुरू होगी, जो प्रदोष काल में पूरी तरह विद्यमान रहेगी.

होली पर घर ले आएं ये चीजें

ऐसा माना जाता है कि होली से पहले कुछ विशेष वस्तुओं को घर लाने से व्यक्ति की किस्मत चमक सकती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है. आइए, जानते हैं क्या लाना चाहिए.

  • श्री यंत्र
  • चांदी का कछुआ
  • कमल गट्टे की माला
  • हल्दी की गांठ और पीला कपड़ा
  • चांदी का सिक्का या लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा

बदलती होली की परंपरा, फाग की राग पड़ रही फीकी (Traditional Holi Rituals India)

  • बदलते समय के साथ गांवों में फाग की मधुर धुनें अब कम सुनाई देने लगी हैं.
  • पारंपरिक होली गीतों की जगह अश्लील गानों ने ले ली है, जिससे होली की मस्ती और उमंग धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है.
  • पहले गूंजने वाले "होली खेले रघुवीरा अवध में..." जैसे सांस्कृतिक और भक्तिमय गीतों के स्वर अब बदल चुके हैं.
  • समय के साथ-साथ रिश्ते औपचारिक होते गए और इसके साथ ही होली की पुरानी परंपराएं भी धीरे-धीरे बदलती चली जा रही हैं.

गांवों में होलिका दहन की परंपरा हो रही खत्म

  • परंपरा के प्रति कम होते उत्साह के कारण गांवों में होलिका दहन की प्राचीन परंपरा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है.
  • करीब दो-ढाई दशक पहले, गांवों में बसंत पंचमी के दिन से ही होलिका दहन की तैयारियां शुरू हो जाती थीं, लेकिन अब यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है.


गांवों में बसंत पंचमी से शुरू हो जाती थी होली की तैयारियां (Changing Holi Traditions In Villages)

  • पहले बसंत पंचमी की रात, गांव के बड़े बुजुर्ग और युवा मिलकर होलिका दहन स्थल पर नया बांस गाड़ते थे. इसी रात से गांव के गवैये पारंपरिक होली गीत गाने लगते थे.
  • बसंत पंचमी से लेकर लगातार चालीस दिन, होली की रात तक, गांवों में ढोलक की थाप और फाग के सुर गूंजते रहते थे, जिससे होली का माहौल पहले ही बन जाता था.
  • पहले होली से एक दिन पहले, होलिका दहन स्थल पर पुआल, गोईठा, उपले, पुरानी खरही और बगीचे के सूखे पत्तों को बड़ी मात्रा में इकट्ठा किया जाता था.
  • देर शाम होलिका दहन के बाद गांवों में होली की हुड़दंग और उत्सव की शुरुआत हो जाती थी. लेकिन आज के समय में यह परंपरा धीरे-धीरे कमजोर पड़ती जा रही है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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