
Ugadi and Gudi Padwa 2025: हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है. इस दिन कई राज्यों में व्रत और त्योहार मनाने की परंपरा है. इस दिन आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में युगादि, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ भागों में धूमधाम से गुड़ी पड़वा मनाया जाता है. इसके अलाव सिंधी समाज में चेट्टी चंड मनाने की परंपरा है. युगादी वसंत के आगमन और रबी की फसलों की कटाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला त्योहार है. युगादी पर घर घर में पारंपरिक व्यंजन खासकर पचड़ी बनाया जाता है और घरों को रंगोली और तोरण से सजाया जाता है. इसके अलावा इस दिन तेल स्नान की भी परंपरा है. लोग भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं और दान करते हैं. महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा पर लोग अपने घर में गुढी लगाते हैं. इसके लिए कलश को फूलों और आम के पत्तों से सजाया जाता है. आइए जानते हैं कब मनाया जाएगा उगादी (Kab Hai Ugadi-2025) और गुड़ी पड़वा (Kab Hai Gudi Padwa -2025) और क्या है इसका महत्व (Ugadi Aur Gudi Padwa Ka Mahatva ).
कब है गुड़ी पड़वा व उगादी 2025 (When Is Ugadi Aur Gudi Padwa 2025)
उगादी या गुड़ी पड़वा हिंदू नव वर्ष यानी चैत्र माह के शुक्ल् पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है. यह आम तौर पर मार्च या अप्रैल के माह में आता है. इस वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 30 मार्च रविवार को है और इसी दिन आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में युगादि और महाराष्ट्र धूमधाम से गुढ़ी पड़वा मनाया जाएगा. इसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत होती है और नौ दिन तक आदि शक्ति मां दुर्गा की पूजा के लिए व्रत रखा जाता है.

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उगादी की पूजा विधि और महत्व (Puja vidhi and importance of Ugadi)
उगादी के दिन प्रात: काल जल्दी उठकर उबटन लगाकर स्नान किया जाता है.
घर और पूजा स्थल की साफ सफाई की जाती है और ब्रह्मा भगवान का चित्र की स्थापना की जाती है.
ब्रह्मा भगवान की विधि विधान से पूजा की जाती है.
बहुत सारे लोग मंदिर जाकर ब्रह्मा भगवान के दर्शन करते हैं.
यह दक्षिण भारत के कई राज्यों में मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार है
इसे नए वर्ष, नए मौसम और फसल की कटाई से जुड़ा त्योहार माना जाता है.
लोग नए वस्त्र पहनते हैं और मंदिर जाते हैं.
घर में विशेष पकवान खासकर पचड़ी तैयार किया जाता है.
इस पर्व को आध्यात्मिक उन्नति और नई ऊर्जा का भी प्रतीक माना जाता है.
गुड़ी पड़वा की पूजा विधि और महत्व (Puja vidhi and importance of Gudi padwa)
सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद कपड़े पहनकर पूजा की तैयारी की जाती है.
सूर्य देव को अर्घ्य देकर पूर्वजों का याद किया जाता है.
घर को रंगोली और तोरण से सजाया जाता है.
घर के आगे गुड़ी ध्वज लगाया जाता है.
घर में पारंपरिक व्यंजन श्रीखंड, पूरन पोली और साबुदाना वड़ा बनाया जाता है.
मान्यता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना की थी. यह दिन वसंत ऋतु और जीवन में नई उमंग की शुरुआत का भी प्रतीक माना जाता है.
यह दिन हिन्दू धर्म की परंपराओं, संस्कृति और कृषि के महत्व का भी प्रतीक माना जाता है.
घर में पारंपरिक व्यंजन श्रीखंड, पूरन पोली और साबुदाना वड़ा बनाया जाता है.
मान्यता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना की थी. यह दिन वसंत ऋतु और जीवन में नई उमंग की शुरूआत का भी प्रतीक माना जाता है.
यह दिन हिन्दू धर्म की परंपराओं, संस्कृति और कृषि के महत्व का भी प्रतीक माना जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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