Sheetala Ashtami 2019: होली के आठवें दिन मनाई जाती है शीतला अष्टमी. इस बार यह अष्टमी 28 मार्च को है. कृष्ण पक्ष की इस शीतला अष्टमी को बासौड़ा (Basoda) और शीतलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता. साथ ही ये अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है. इस बदलाव से बचने के लिए साफ-सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है. साथ ही यह भी माना जाता है कि इस अष्टमी के बाद बासी खाना नहीं खाया जाता. यहां जानिए शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा के बारे में.
शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त
28 मार्च सुबह 06:27 से शाम 18:37
शीतला अष्टमी के नाम
इस अष्टमी को अलग-अलग राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है. गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में इसे शीतला अष्टमी कहा जाता है. इसे बसौड़ा, बसोरा और शीतलाष्टमी भी कहा जाता है.
शीतला माता का रूप
शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना जाता है. यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं. गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं.
चावल का प्रसाद
शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है. ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं. इन्हें सप्तमी की रात को बनाया जाता है. इसी प्रसाद को घर में सभी सदस्यों को खिलाया जाता है. शीतला अष्टमी के दिन घर में ताज़ा खाना नहीं बनता.
शीतला अष्टमी की पूजा विधि
1. सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर नहाएं.
2. पूजा की थाली तैयार करें. थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें.
3. दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें.
4. दोनों थाली के साथ में लोटे में ठंडा पानी रखें.
5. शीतला माता की पूजा करें और दीपक को बिना जलाए ही मंदिर में रखें.
6. माता को सभी चीज़े चढ़ाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं.
7. अब हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना करें और 'हे माता, मान लेना और शीली ठंडी रहना' कहें.
8. घर में पूजा करने के बाद अब मंदिर में पूजा करें.
9. मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाएं. रोली और हल्दी के टीका करें.
10. मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें.
11. बड़कुले की माला व आटे के दीपक को बिना जलाए अर्पित करें.
12. अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाएं. इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कें.
13. इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें. थोड़ा जल चढ़ाएं और पूजन सामग्री चढ़ाएं.
14. घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें.
15. अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय या ब्राह्मण को दे दें.
शीतला अष्टमी की कथा
हिंदू धर्म में प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक दिन बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा. मान्यता के मुताबिक इस व्रत में बासी चावल चढ़ाए और खाए जाते हैं. लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह ताज़ा खाना बना लिया. क्योंकि हाल ही में दोनों की संताने हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचाए. सास को ताज़े खाने के बारे में पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुई. कुछ क्षण ही गुज़रे थे, कि पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई. इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया.
शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं. बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं. वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली. दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी. उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं. कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला, आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए.
ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए. ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है. ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला अष्टमी के दिन ताज़ा खाना बनाने की वजह से ऐसा हुआ.
ये सब जान दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा. इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया. इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा.
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