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This Article is From Jan 25, 2022

Shattila Ekadashi: जानिए षटतिला एकादशी के दिन क्यों किया जाता है विष्णु कवच का पाठ

एकादशी का व्रत भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है. इस साल षटतिला एकादशी 28 जनवरी यानि शुक्रवार के दिन पड़ रही है. कहते हैं इस दिन भगवान विष्णु का पूजन और व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. षटतिला एकादशी के दिन पूजन के समय विष्णु कवच का पाठ करना शुभ माना जाता है.

Shattila Ekadashi: जानिए षटतिला एकादशी के दिन क्यों किया जाता है विष्णु कवच का पाठ
Shattila Ekadashi: षटतिला एकादशी को जरूर करें विष्णु कवच का पाठ, बनी रहेगी श्री हरि की कृपा
नई दिल्ली:

एकादशी के व्रत (Ekadashi Vrat) का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. माघ माह (Magh Month Ekadashi ) के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित होता है. इस साल षटतिला एकादशी 28 जनवरी (Shattila Ekadashi 2022) यानि शुक्रवार के दिन पड़ रही है. कहते हैं इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन और व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस एकादशी को पापहारिणी एकादशी भी कहा जाता है.

मान्यता है कि षटतिला एकादशी व्रत में भगवान श्री हरि विष्णु को तिल से बने पकवानों का भोग लगाने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस दिन तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिलों का दान और तिलों से बनी चीजों का सेवन करना अत्यंत शुभ माना गया है. षटतिला एकादशी के दिन पूजन के समय विष्णु कवच का पाठ करना शुभ माना जाता है.

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नारायण कवच

ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे।

दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान् दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः ।।

जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात्।

स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ।।

दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः।

विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ।।

रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।

रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान् ।।

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मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात्।

दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ।।

सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।

देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ।।

धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।

यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ।।

द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्।

कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः ।।

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मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः।

नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः ।।

देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।

दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोsवतु पद्मनाभः ।।

श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः।

दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ।।

चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्।

दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ।।

गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।

कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ।।

त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।

दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ।।

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त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि।

चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम्  ।।

यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।

सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा ।।

सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।

प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः ।।

गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।

रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ।।

सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।

बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः ।।

यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।

सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः ।।

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यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।

भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ।।

तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।

पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ।।

विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।

प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः ।।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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