प्रतीकात्मक चित्र
देश का दिल कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश के ग्वालियर सिटी से लगभग 15 किमी दूर है कुलैथ नामक एक गांव। इस गांव में स्थापित है भगवान जगन्नाथ का मंदिर, जहां ओडिशा के जगन्नाथ पुरी की ही तरह धूमधाम से हर साल रथयात्रा निकाली जाती है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर की तरह यह मंदिर भी कम चमत्कार से भरा नहीं है। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के अनुसार रथयात्रा के दौरान एक निश्चित समय पर इस मंदिर में चावल के कलश का अपने-आप टूट जाना एक विस्मयकारी घटना है।
आषाढ़ महीने में निकलती है रथयात्रा...
हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल माह की द्वितीया तिथि को यहां भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह हर साल रथयात्रा निकाली जाती है।
रथयात्रा के दौरान यहां भी भगवान भगवान जगन्नाथ अपने बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मंदिर से बाहर रथ पर सैर के लिए निकलते हैं।
पुरी में रुक जाती है रथयात्रा...
एक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि कुलैथ की रथयात्रा और जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा के मुहूर्त एक-दूसरे से अंतर्संबंधित हैं। जैसे ही ओडिशा के पुरी में रथयात्रा की घोषणा होती है, वैसे ही कुलैथ में भी धूमधाम और गाजेबाजे से रथयात्रा शुरू हो जाती है।
उल्लेखनीय है रथयात्रा के दौरान जैसे ही कुलैथ प्रस्थान मुहूर्त आता है, इसके लिए पुरी में बाकायदा घोषणा होती है कि भगवान जगन्नाथ अब कुलैथ प्रस्थान कर रहे हैं और पुरी में रथयात्रा रुक जाती है।
सात कलशों में पकाया जाता है चावल...
इसी के साथ यहां दो दिवसीय मेले की शुरुआत हो जाती है। मेले के दूसरे दिन 172 साल पुराने इस मंदिर की रसोई में एक के ऊपर एक 7 कलशों में चावल पकाया जाता है।
फिर इन कलशों को एक के बाद एक भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और देवी सुभद्रा के सामने प्रस्तुत किया जाता है। लोगों का कहना है कि ये सातों कलश स्वयं ही एक समान चार भागों में चटक कर टूट जाते हैं।
कहते हैं कि...
चावल के कलशों का भगवान की मूर्ति के समक्ष अपने आप टूट जाना न केवल लोगों में आस्था का प्रवाह करता है बल्कि यह चमत्कार उन्हें आश्चर्यचकित भी करता है।
कहते हैं कि इन कलशों के चावल को घर में रखने से कभी घर में अन्न की कमी नहीं होती है। सच जो भी लेकिन कलश के उन चावलों को लोग पूरी श्रद्धा और भक्ति-भाव से अपने घरों में रखते हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर की तरह यह मंदिर भी कम चमत्कार से भरा नहीं है। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के अनुसार रथयात्रा के दौरान एक निश्चित समय पर इस मंदिर में चावल के कलश का अपने-आप टूट जाना एक विस्मयकारी घटना है।
आषाढ़ महीने में निकलती है रथयात्रा...
हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल माह की द्वितीया तिथि को यहां भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह हर साल रथयात्रा निकाली जाती है।
रथयात्रा के दौरान यहां भी भगवान भगवान जगन्नाथ अपने बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मंदिर से बाहर रथ पर सैर के लिए निकलते हैं।
पुरी में रुक जाती है रथयात्रा...
एक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि कुलैथ की रथयात्रा और जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा के मुहूर्त एक-दूसरे से अंतर्संबंधित हैं। जैसे ही ओडिशा के पुरी में रथयात्रा की घोषणा होती है, वैसे ही कुलैथ में भी धूमधाम और गाजेबाजे से रथयात्रा शुरू हो जाती है।
उल्लेखनीय है रथयात्रा के दौरान जैसे ही कुलैथ प्रस्थान मुहूर्त आता है, इसके लिए पुरी में बाकायदा घोषणा होती है कि भगवान जगन्नाथ अब कुलैथ प्रस्थान कर रहे हैं और पुरी में रथयात्रा रुक जाती है।
सात कलशों में पकाया जाता है चावल...
इसी के साथ यहां दो दिवसीय मेले की शुरुआत हो जाती है। मेले के दूसरे दिन 172 साल पुराने इस मंदिर की रसोई में एक के ऊपर एक 7 कलशों में चावल पकाया जाता है।
फिर इन कलशों को एक के बाद एक भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और देवी सुभद्रा के सामने प्रस्तुत किया जाता है। लोगों का कहना है कि ये सातों कलश स्वयं ही एक समान चार भागों में चटक कर टूट जाते हैं।
कहते हैं कि...
चावल के कलशों का भगवान की मूर्ति के समक्ष अपने आप टूट जाना न केवल लोगों में आस्था का प्रवाह करता है बल्कि यह चमत्कार उन्हें आश्चर्यचकित भी करता है।
कहते हैं कि इन कलशों के चावल को घर में रखने से कभी घर में अन्न की कमी नहीं होती है। सच जो भी लेकिन कलश के उन चावलों को लोग पूरी श्रद्धा और भक्ति-भाव से अपने घरों में रखते हैं।
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