द्वितीय नवरात्र 2017 : यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय के लिए होती है देवी ब्रह्मचारिणी
आदिशक्ति-स्वरुपा देवी दुर्गा का द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी का है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्ति के लिए विकट तपस्या की थी. इसलिए वे तपश्चारिणी के नाम से भी जानी जाती हैं. नवरात्रि के दूसरे दिन इसी देवी की आराधना की जाती है. मान्यता है कि देवी दुर्गा का यह रूप साधकों को अमोघ फल प्रदान करता है. साधक को यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है. नवरात्रि के दूसरे दिन साधक इनकी आराधना कर अपने चित्त को ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित करते हैं.
अद्भुत है देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरुप
नवदुर्गाओं में द्वितीय देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण-ज्योर्तिमय है. वे गहन तप में लीन हैं. देवी का मुख दिव्य तेज से भरा है और भंगिमा शांत है. मुखमंडल पर विकट तपस्या के कारण अद्भुत तेज और अद्वितीय कांति का अनूठा संगम है, जिससे तीनों लोक प्रकाशमान हो रहे हैं.
मां ब्रह्मचारिणी के दायें हाथ में जप की माला है. उनके बायें हाथ में कमण्डल है. ये दोनों अवयव उनके तपस्वी होने की घोषणा करते हैं. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं यानी तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं.
देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना का ध्यान मंत्र और स्तोत्र पाठ
देवी ब्रह्मचारिणी की समुचित उपासना साधक में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि करता है. देवी दुर्गा के इस द्वितीय स्वरुप की अनुकंपा से साधक की समस्त समस्याओं एवं परेशानियों का नाश और उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय मिलती होती है. प्रस्तुत है उनकी उपासना का ध्यान मंत्र और स्तोत्र पाठ:
ब्रह्मचारिणी उपासना ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्घकृत शेखराम्.
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम.
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन.
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
ब्रह्मचारिणी उपासना स्तोत्र पाठ
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्.
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी.
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
मान्यता है कि मां दुर्गा के द्वितीय रुप देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना इस मंत्र और स्तोत्र से करने पर भक्तों को अनन्त फल की प्राप्ति होती है. जीवन के कठिन-से-कठिन संघर्षों में भी उसका चित्त एकनिष्ठ रहता है और मन कर्तव्य-पथ से विमुख नहीं होता है.
अद्भुत है देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरुप
नवदुर्गाओं में द्वितीय देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण-ज्योर्तिमय है. वे गहन तप में लीन हैं. देवी का मुख दिव्य तेज से भरा है और भंगिमा शांत है. मुखमंडल पर विकट तपस्या के कारण अद्भुत तेज और अद्वितीय कांति का अनूठा संगम है, जिससे तीनों लोक प्रकाशमान हो रहे हैं.
मां ब्रह्मचारिणी के दायें हाथ में जप की माला है. उनके बायें हाथ में कमण्डल है. ये दोनों अवयव उनके तपस्वी होने की घोषणा करते हैं. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं यानी तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं.
देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना का ध्यान मंत्र और स्तोत्र पाठ
देवी ब्रह्मचारिणी की समुचित उपासना साधक में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि करता है. देवी दुर्गा के इस द्वितीय स्वरुप की अनुकंपा से साधक की समस्त समस्याओं एवं परेशानियों का नाश और उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय मिलती होती है. प्रस्तुत है उनकी उपासना का ध्यान मंत्र और स्तोत्र पाठ:
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जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
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धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन.
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
ब्रह्मचारिणी उपासना स्तोत्र पाठ
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्.
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी.
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
मान्यता है कि मां दुर्गा के द्वितीय रुप देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना इस मंत्र और स्तोत्र से करने पर भक्तों को अनन्त फल की प्राप्ति होती है. जीवन के कठिन-से-कठिन संघर्षों में भी उसका चित्त एकनिष्ठ रहता है और मन कर्तव्य-पथ से विमुख नहीं होता है.
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