दो महीने से अधिक समय तक चले मंडलम मकरविलक्कू तीर्थाटन के संपन्न होने के बाद यहां भगवान अयप्पा मंदिर के कपाट मंगलवार को पारंपरिक विधि-विधान और पूजा के उपरांत बंद कर दिए गए. पश्चिमी घाट पर वनों के बीच स्थित इस पहाड़ी मंदिर में वैसे तो वार्षिक मकरविलक्कू 15 जनवरी को हुआ, लेकिन इसे श्रद्धालुओं की पूर्जा अर्चना के लिए सोमवार की शाम तक खोलकर रखा गया.
त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि तीर्थाटन के आखिरी दिन शन्निधनम (मंदिर परिसर) में बड़ी संख्या में तीर्थयात्री पहुंचे जिनमें पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु भी थे. यही बोर्ड इस मंदिर का रखरखाव करता है.
मंदिर में मंगलवार को ब्रह्ममुहूर्त में तांत्री महेश मोहनारू की अगुवाई में ‘अष्टद्रव्य महागणपति होमम', ‘अभिषेकम' और ‘उषा नैवेद्यम' जैसे पारंपरिक अनुष्ठान किए गए. इसके उपरांत परंपरा के अनुसार पंडलम महल के शाही प्रतिनिधि ने गर्भगृह में भगवान अयप्पा की आरती की और कई अन्य अनुष्ठान किए गए. किंवदंती है कि भगवान अयप्पा ने इसी महल में अपना बचपन बिताया था.
बोर्ड के सूत्रों के अनुसार यह मंदिर 13 फरवरी को मासिक पूजा के लिए खुलेगा और तब पांच दिन तक वहां श्रद्धालु जा पाएंगे। इस मंदिर में देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं.
पिछले साल जब माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार ने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने के उच्चतम न्यायालय के 28 सितंबर, 2018 के फैसले को लागू करने की घोषणा की थी तब दक्षिणपंथी संगठनों और भाजपा ने यहां जबर्दस्त प्रदर्शन किया था.
लेकिन इस साल, फैसले के विरुद्ध दायर समीक्षा याचिकाओं को शीर्ष अदालत ने एक बड़ी पीठ के पास भेजने का फैसला किया. इस पर राज्य सरकार ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश की इच्छुक महिलाओं को इसके लिए अदालत से आदेश लेकर आना होगा.
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