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This Article is From Sep 02, 2019

Rishi Panchami 2019: क्यों मनाई जाती है ऋषि पंचमी? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व

हिंदू धर्म में मान्यता है कि मासिक धर्म के दौरान किसी भी महिला को धार्मिक काम नहीं करने चाहिए. यदि किसी महिला से पीरियड्स के दौरान धार्मिक कार्य हो जाए तो वह ऋषि पंचमी का व्रत कर अपनी भूल सुधार सकती है. पुराणों के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने ऋषि पंचमी के व्रत को पापों को दूर करने वाला बताया है.

Rishi Panchami 2019: क्यों मनाई जाती है ऋषि पंचमी? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व
ऋषि पंचमी क्यों मनाई जाती है?
नई दिल्ली:

हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) का काफी महत्व है. इस पंचमी के दिन सप्त ऋषि की पूजा की जाती है. बता दें, इस पंचमी का नाता महिलाओं के पीरियड्स से है. दरअसल, हिंदू धर्म में मान्यता है कि मासिक धर्म के दौरान किसी भी महिला को धार्मिक काम नहीं करने चाहिए. यदि किसी महिला से पीरियड्स के दौरान धार्मिक कार्य हो जाए तो वह ऋषि पंचमी का व्रत कर अपनी भूल सुधार सकती है. पुराणों के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने ऋषि पंचमी के व्रत को पापों को दूर करने वाला बताया है. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से महिलाएं दोष मुक्‍त होती हैं. 

कब मनाई जाती है ऋषि पंचमी?
हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार भाद्र पद यानी कि भादो माह की पंचमी को ऋषि पंचमी मनाई जाती है.  यह व्रत हरतालिका तीज के दो दिन बाद और गणेश चतुर्थी के अगले दिन पड़ता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक ऋषि पंचमी अगस्‍त या सितंबर महीने में आती है. 

ऋषि पंचमी का महत्‍व 
हिन्‍दू धर्म को मानने वालों में ऋषि पंचमी का विशेष महत्‍व है. दोषों से मुक्‍त होने के लिए इस व्रत को किया जाता है. मान्‍यता है कि अगर कोई महिला महावारी के दौरान नियम तोड़ दे तो वह ऋषि पंचमी के दिन सप्‍त ऋषि की पूजा कर अपनी भूल सुधारने के बाद दोष मुक्‍त हो सकती है. 

ऋषि पंचमी की तिथि और शुभ मुहूर्त 
ऋषि पंचमी की तिथि: 03 सितंबर 2019
पंचमी तिथि प्रारंभ: 03 सितंबर 2019 को सुबह 01 बजकर 54 मिनट से 
पंचमी तिथि समाप्‍त: 03 सितंबर 2019 को रात 11 बजकर 27 मिनट तक
ऋषि पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त: 03 सितंबर 2019 को सुबह 11 बजकर 05 मिनट से 01 बजकर 36 मिनट तक 
कुल अवधि: 02 घंटे 31 मिनट

ऋषि पंचमी की पूजा विधि 
- इस व्रत को महिलाएं रखती हैं.
- सूर्योदय से पहले उठकर स्‍नान कर लें और साफ वस्‍त्र धारण करें. 
- घर के मंदिर में गोबर से चौक बनाएं. 
- इसके बाद ऐपन या रंगोली से सप्‍त ऋषि बनाएं. 
- अब कलश की स्‍थापना करें. 
- सप्‍त ऋषि को धूप-दीपक दिखाकर फल-फूल चढ़ाएं. 
- अब सप्‍त ऋषि को भोग लगाएं.  
- व्रत कथा सुनने के बाद आरती करें और सभी को प्रसाद वितरण करें. 

ऋषि पंचमी व्रत के नियम 
- ऋषि पंचमी का व्रत को करने वाली महिलाएं इस दिन हल का बोया अनाज नहीं खाती हैं. 
- इस व्रत में पसई धान के चावल खाए जाते हैं. 
- महावारी खत्‍म होने यानी कि मेनोपॉज के बाद इस व्रत का उद्यापन कर दिया जाता है. 

ऋषि पंचमी व्रत कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है एक राज्‍य में ब्राह्मण पति-पत्‍नी रहते थे. उनकी दो संतान एक पुत्र और एक पुत्री थी. उन्‍होने अपनी बेटी का विवाह एक अच्‍छे कुल में किया लेकिन कुछ समय बाद दामाद की मृत्‍यु हो गई. वैधव्‍य व्रत का पालन करते हुए बेदी नदी किनारे एक कुटिया में वास करने लगी. कुछ समय बाद बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे. उसकी ऐसी दशा देख ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से इसका कारण पूछा. ब्राह्मण ने ध्‍यान लगाकर अपनी बेटी के पूर्व जन्‍म के कर्मों को देखा जिसमें उसकी बेटी ने महावारी के समय बर्तनों को स्‍पर्श किया और वर्तमान जन्‍म में ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया इसलिए उसके जीवन में सौभाग्‍य नहीं है. कारण जानने के बाद ब्राह्मण की बेटी विधि-विधान के साथ व्रत किया. इस व्रत के प्रताप से उसे अगले जन्‍म में पूर्ण सौभाग्‍य की प्राप्‍ति हुई.

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