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Rang Panchami 2025: इस साल 18 या 19 मार्च कब मनाई जाएगी रंग पंचमी, यहां जानिए सही तिथि

Rang Panchami Date: मान्यतानुसार रंग पंचमी के दिन ही श्रीकृष्ण और राधा रानी ने होली खेली थी. ऐसे में हर साल पूरे मनोभाव से रंग पंचमी मनाई जाती है.

Rang Panchami 2025: इस साल 18 या 19 मार्च कब मनाई जाएगी रंग पंचमी, यहां जानिए सही तिथि
Rang Panchami Kab Hai: होली के बाद मनाया जाता है रंग पंचमी का त्योहार. 

Rang Panchami 2025: होली के पांच दिन बाद रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. रंग पंचमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि पर मनाई जाती है. रंग पंचमी की विशेष धार्मिक मान्यता होती है. माना जाता है कि रंग पंचमी के ही दिन श्रीकृष्ण ने राधा-रानी के साथ होली खेली थी और इस मोहक दृश्य को देख देवी-देवताओं ने उनपर पुष्पों की वर्षा की थी. रंग पंचमी पर अबीर-गुलाल उड़ाया जाता है और पूरे मनोभाव से राधा रानी और श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की पूजा की जाती है. ब्रज में खासतौर से रंग पंचमी की धूम देखने को मिलती है. उत्तर प्रदेश समेत मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में रंग पंचमी मनाई जाती है. हालांकि, इस साल रंग पंचमी की तिथि को लेकर खासा उलझन की स्थिति बन रही है. ऐसे में यहां जानिए इस साल कब मनाया जाएगा रंग पंचमी का त्योहार. 

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रंग पंचमी कब है | Rang Panchami Date

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 18 मार्च की रात 10 बजकर 9 मिनट पर होगी और इस तिथि का समापन 20 मार्च की रात 12 बजकर 37 मिनट पर हो जाएगा. उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए 19 मार्च, बुधवार के दिन रंग पंचमी मनाई जाएगी. 

कैसे मनाई जाती है रंग पंचमी 

रंग पंचमी मनाने के लिए सुबह स्नान करके श्रीकृष्ण और राधा रानी का ध्यान किया जाता है और पूजा (Rang Panchami Puja) की जाती है. साथ ही, लक्ष्मी-नारायण की पूजा करना इस दिन शुभ होता है. रंग पंचमी पर अबीर-गुलाल श्रीकृष्ण के समक्ष अर्पित करते हैं. इस दिन राधा रानी और श्रीकृष्ण के समक्ष पीले रंग के फूल अर्पित करना भी शुभ होता है. 

रंग पंचमी पर पढ़ें श्रीकृष्ण चालीसा 

॥ दोहा॥
बंशी शोभित कर मधुर,
नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बफल,
नयन कमल अभिराम ॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख,
पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि,
कृष्णचन्द्र महाराज ॥

॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन ।
जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥

जय नट-नागर नाग नथैया ।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी ।
होवे पूर्ण मनोरथ मेरो ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो ।
आज लाज भारत की राखो ॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

रंजित राजिव नयन विशाला ।
मोर मुकुट वैजयंती माला ॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे ।
कटि किंकणी काछन काछे ॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।
छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले ।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो ।
अका बका कागासुर मारयो ॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला ।
भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला ॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई ।
मसूर धार वारि वर्षाई ॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो ।
गोवर्धन नखधारि बचायो ॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।
मुख महं चौदह भुवन दिखाई ॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें ॥

करि गोपिन संग रास विलासा ।
सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

केतिक महा असुर संहारयो ।
कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ॥20

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई ।
उग्रसेन कहं राज दिलाई ॥

महि से मृतक छहों सुत लायो ।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।
लाये षट दश सहसकुमारी ॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥

असुर बकासुर आदिक मारयो ।
भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो ।
तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो ॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे ।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥

लखि प्रेम की महिमा भारी ।
ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥

भारत के पारथ रथ हांके ।
लिए चक्र कर नहिं बल ताके ॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये ।
भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये ॥

मीरा थी ऐसी मतवाली ।
विष पी गई बजाकर ताली ॥

राना भेजा सांप पिटारी ।
शालिग्राम बने बनवारी ॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो ।
उर ते संशय सकल मिटायो ॥

तब शत निन्दा करी तत्काला ।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई ।
दीनानाथ लाज अब जाई ॥

तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला ।
बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया ।
डूबत भंवर बचावत नैया ॥

सुन्दरदास आस उर धारी ।
दयादृष्टि कीजै बनवारी ॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै ।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का,
पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,
लहै पदारथ चारि॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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