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This Article is From Nov 01, 2021

Rama Ekadashi 2021: इस कथा के बिना अधूरा है रमा एकादशी का व्रत, जानिये इसका महत्व

Rama Ekadashi:रमा एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा के साथ ही व्रत कथा का पाठ किया जाता है. माना जाता है कि, जो लोग कथा का पाठ नहीं कर सकते हैं उन्हें व्रत कथा सुननी चाहिए. इस कथा के बिना रमा एकादशी का व्रत अधूरा माना जाता है.

Rama Ekadashi 2021: इस कथा के बिना अधूरा है रमा एकादशी का व्रत, जानिये इसका महत्व
Rama Ekadashi 2021: पढ़ें कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली रमा एकादशी की व्रत कथा
नई दिल्ली:

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है. रमा एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु के साथ धन ऐश्वर्य और वैभव की देवी माता लक्ष्मी की भी पूजा विधि विधान से की जाती है. बता दें कि एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा के साथ ही व्रत कथा का पाठ करते हैं. ऐसा माना जाता है कि, जो लोग कथा का पाठ नहीं कर सकते हैं उन्हें व्रत कथा सुननी चाहिए. इस कथा के बिना रमा एकादशी का व्रत अधूरा माना जाता है. इस साल आज (सोमावार, 1 नवंबर 2021) रमा एकादशी का व्रत किया जा रहा है. धनतेरस और दिवाली से पहले रमा एकादशी का आना धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व रखता है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. साथ ही सभी तरह के पाप से मुक्ति मिलती है. वहीं इस व्रत को करने से महालक्ष्मी की भी विशेष कृपा भी बनी रहती है ऐसा माना जाता है.

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जानिये रमा एकादशी में पढ़ी जाने वाली इस कथा का महत्व 

रमा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, मुचुकंद नाम का एक प्रतापी राजा था, जिनकी चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी. राजा मुचुकंद ने अपनी बेटी चंद्रभागा का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया. शोभन एक समय बिना खाए नहीं रह सकता था. शोभन एक बार कार्तिक मास के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया, तभी रमा एकादशी व्रत पड़ा. चंद्रभागा के राज्य में सभी रमा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखते थे और ऐसा ही करने के लिए शोभन से भी कहा गया. शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वो रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा. इस परेशानी को लेकर शोभन, चंद्रभागा के पास पहुंचा. चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य के बाहर जाना पड़ेगा, क्योंकि राज्य में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो. यहां तक कि इस दिन राज्य के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं. आखिरकार शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा, लेकिन पारण करने से पहले उसकी मृत्यु हो गयी. चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी.

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पढ़ें रमा एकादशी की व्रत कथा

Photo Credit: insta hail_lord_vishnu_god

उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ. एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे. उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया. ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ. तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई. चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी. वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची. चंद्रभागा मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची. अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया. तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

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