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भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए रख रहे हैं प्रदोष व्रत तो जरूर पढ़ें यह कथा, इसके बिना पूजा मानी जाती है अधूरी

हर महीने में शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है जिसमें भगवान भोलेनाथ की आराधना की जाती है. ऐसे में अगर आप प्रदोष व्रत रख रहे हैं तो इस कथा का पाठ जरूर करें.

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भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए रख रहे हैं प्रदोष व्रत तो जरूर पढ़ें यह कथा, इसके बिना पूजा मानी जाती है अधूरी
प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में किया जाता है महादेव का पूजन.

Pradosh Vrat July: हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. यह व्रत भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) को समर्पित होता है और कहते हैं कि प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं, उनके सारे दुख-तकलीफ और कष्टों का निवारण करते हैं. मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत की पूजा सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है. लेकिन, कहा जाता है कि प्रदोष का व्रत अगर आप कर रहे हैं तो इसकी कथा सुनना बहुत शुभ माना जाता है. मान्यतानुसार अगर प्रदोष व्रत को आप पूर्ण करना चाहते हैं तो इसकी कथा जरूर सुनें, नहीं तो यह व्रत अधूरा माना जाता है.

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प्रदोष व्रत की कथा | Pradosh Vrat Katha

स्कंद पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और शाम को घर लौट आई थी. एक दिन जब वो भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो नदी किनारे एक बालक उसे दिखाई दिया. वह बालक विधर्व देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था और उसकी मां की भी अकाल मृत्यु हो गई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन पोषण किया. कुछ समय बाद वो ब्राह्मणी अपने दोनों बेटों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई जहां उनकी मुलाकात ऋषि शांडिल्य से हुई. ऋषि शांडिल्य ने उन्हें बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वो विदर्भ देश के राजकुमार का पुत्र है. इसके बाद ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. फिर घर लौटकर विधवा ब्राह्मणी ने अपने दोनों बेटों के साथ प्रदोष व्रत करना शुरू किया.

एक दिन दोनों पुत्र वन में घूम रहे थे. तभी गंधर्व कन्याएं उन्हें नजर आईं, ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया, लेकिन राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे और दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए. इसके बाद गंधर्व राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करवाया, फिर धर्मगुप्त ने गंधर्व सेवा की मदद से विदर्भ देश पर आधिपत्य हासिल किया. कहा जाता है कि यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था. इसलिए कहते हैं कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा (Pradosh Vrat Puja) के बाद अगर इस कथा को पढ़ा या सुना जाए तो 100 जन्मों के पाप और दरिद्रता भी दूर हो जाती है.

अब बात आती है कि प्रदोष व्रत पर पूजा करने के लिए आपको क्या करना चाहिए. तो अगले महीने आषाढ़ माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 जुलाई को मनाई जाएगी जिसका शुभ मुहूर्त सुबह 7:10 से शुरू होकर 4 जुलाई सुबह 5:54 तक रहेगा. ऐसे में बुधवार के दिन ही प्रदोष व्रत रखा जाएगा, जिसे बुध प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat) कहा जाता है. इस दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए, उन्हें बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि अर्पित करना चाहिए. मान्यतानुसार पूरे दिन का उपवास करने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले स्नान करके सफेद रंग के कपड़े पहनकर भगवान शिव की पूजा और उनके मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करने से इस व्रत के फल की प्राप्ति होती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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