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This Article is From Feb 28, 2024

Phulera Dooj 2024: मार्च के दूसरे हफ्ते में मनाया जाएगा फुलेरा दूज का पर्व, इस दिन खेली जाती है फूलों से होली

Phulera Dooj Date: मान्यतानुसार फुलेरा दूज को बेहद शुभ और मंगलकारी माना जाता है. इस दिन राधा रानी और श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है.

Phulera Dooj 2024: मार्च के दूसरे हफ्ते में मनाया जाएगा फुलेरा दूज का पर्व, इस दिन खेली जाती है फूलों से होली
Phulera Dooj Kab Hai: इस दिन की जाती है राधा-कृष्ण की पूजा. 

Phulera Dooj 2024: फाल्गुन माह में होली से पहले फुलेरा दूज मनाया जाता है. इस दिन रंगो के बजाय फूलों से होली खेली जाती है. फुलेरा दूज के दिन से ही मथुरा से होली (Holi) की शुरूआत हो जाती है. पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि पर फुलेरा दूज मनाया जाता है. फुलेरा दूज के दिन मान्यतानुसार श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा की जाती है. जानिए इस साल फुलेरा दूज किस दिन है और क्या है इस पर्व का महत्व. 

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फुलेरा दूज कब है | Phulera Dooj Date 

इस साल पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरूआत 11 मार्च, सोमवार की सुबह 10 बजकर 44 मिनट से हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन 12 मार्च, मंगलवार सुबह 7 बजकर 13 मिनट पर हो जाएगा. ऐसे में उदया तिथि को देखते हुए फुलेरा दूज 12 मार्च के दिन मनाई जाएगी. फुलेरा दूज के दिन सुबह 9 बजकर 32 मिनट से दोपहर 2 बजे तक राधा-कृष्ण की पूजा का शुभ मुहूर्त पड़ रहा है. 

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माना जाता है कि फुलेरा दूज के दिन फूलों वाली होली खेलने पर जीवन से दुखों का निवारण हो जाता है. इसके अतिरिक्त, मांगलिक कार्यों जैसे विवाह आदि के लिए भी इस दिन को अत्यधिक शुभ माना जाता है. फुलेरा दूज को अभुज मुहू्र्त भी कहते हैं. इस दिन कृष्ण मंदिरों में विशेष झांकी निकाली जाती है, भक्त मंदिर के आगे तांता लगाए रहते हैं, राधा-कृष्ण (Radha-Krishna) की पूजा की जाती है और फूलों की बरसात करते हुए होली खेली जाती है. 

फुलेरा दूज की पूजा विधि 

पूजा करने के लिए फुलेरा दूज के दिन राधा रानी और श्रीकृष्ण की मूर्तियों को सजाया जाता है. मूर्तियों को पीले वस्त्र धारण कराए जाते हैं और खुद भी भक्त इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनते हैं. फुलेरा दूज के दिन राधा रानी को सौलह श्रृंगार कराया जाता है. इसके अतिरिक्त घी का दीपक जलाकर पूजा की जाती है, बेसन के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. इसके पश्चात राधा-कृष्ण की आरती की जाती है और मंत्रों का जाप करते हुए पूजा संपन्न की जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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