
Panchshul Mandir kahan hai: सनातन परंपरा में भगवान शिव की पूजा अत्यंत ही शुभ और शीघ्र फलदायी मानी गई है. यही कारण है कि आपको देश के कोने-कोने में लोग शिव की पूजा, जप-तप और साधना करते हुए दिख जाएंगे. तमाम देवालयों की तरह कई शिवालय भी अपनी विशेषता के कारण देश-दुनिया में जाने जाते हैं. एक ऐसा ही शिव का पावन धाम झारखंड के देवघर में स्थित है, जिसे लोग वैद्यनाथ धाम के नाम से जानते हैं. महादेव के इस मंदिर की खासियत है कि यहां उनके मंदिर के शिखर पर त्रिशूल नहीं बल्कि पंचशूल लगा है. आइए पंचशूल वाले इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं.
कहां है पंचशूल वाला मंदिर
त्रिशूल की बजाय पंचशूल वाला अनोखा मंदिर झारखंड के देवघर में स्थित है. यह मंदिर देश के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा वैद्यनाथ का पावन धाम है, जहां पर सावन के महीने शिवभक्तों की भारी भीड़ जुटती है. ज्योतिर्लिंग के अलावा यह मंदिर दो कारणों से जाना जाता है. पहला बाबा वैद्यनाथ अपने नाम के अनुसार लोगों को आरोग्य का वरदान देने वाले माने जाते हैं दूसरा इस मंदिर का पांच शूल वाला शिखर. खास बात ये कि यहां पर एक नहीं बल्कि मंदिरों में पंचशूल लगा हुआ है. जिनकी पूजा हर साल श्रावण मास में विशेष रूप से की जाती है.

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पंचशूल का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में पांच की संख्या का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. यदि बात करें भगवान शिव की तो उनके पंचमुखी स्वरूप और पंचमुखी रुद्राक्ष की तरह यह पंचशूल भी अत्यंत ही पवित्र और फलदायी माना गया है. यह अत्यधिक पावरफुल माना जाता है. मान्यता है कि रावण ने अपने सोने की लंका में भी इसे लगा रखा था क्योंकि इसे भेदना सभी के लिए मुमकिन नहीं था. भगवान राम भी विभीषण की मदद की मदद से इसे भेदकर लंका में प्रवेश कर पाए थे. पंचशूल के पांच नुकीले चोंच को पंच विकार - काम, क्रोध, लोभ, मोह, और ईर्ष्या को शमन करने वाला माना जाता है.
पंचशूल का रावण से क्या है कनेक्शन
सनातन परंपरा में न सिर्फ पंचशूल बल्कि वैद्यनाथ मंदिर को भी रामायणकाल की घटना से जोड़कर देखा जाता है. मान्यता है कि एक बारा रावण ने जिस शिवलिंग की कठिन तपस्या करके महादेव को प्रसन्न किया, उसी को उसने लंका में स्थापित करने के लिए महोदव से वरदान मांगा था. जिस पर भगवान शिव ने तथास्तु कहा, लेकिन साथ में यह शर्त भी जोड़ दी कि अगर रास्ते में यह कहीं जमीन पर रख दिया गया तो फिर वहीं स्थापित हो जाएगा. मान्यता है कि रास्ते में रावण ने एक शिवभक्त को इसे थामने के लिए दिया, लेकिन उस व्यक्ति ने इसे भारी बताकर जमीन पर रख दिया. जिसके बाद वह वहीं स्थापित हो गया और वैद्यनाथ धाम के नाम से जाना गया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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