अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के साथ ही ओणम (Onam) भी लोग ज़ोरों शोरों से मना रहे हैं. दक्षिण भारत के केरल राज्य का यह प्रमुख त्योहार है, और मलयाली हिन्दुओं का नव वर्ष है. यह एक कृषि पर्व है, जिसे हर समुदाय के लोग उत्साह और धूमधाम के साथ मनाते हैं. यह उत्सव राजा बलि के स्वागत में हर साल मनाया जाता है, जो कि पूरे 10 दिन तक चलता है. हर साल इस मंदिरों में ओणम के दौरान विशेष पूजा-अर्चना होती है.
ओणम कब है?
राज्य का कृषि पर्व कहलाने वाला ओणम मलयालम कैलेंडर के पहले माह चिंगम के शुरू में पड़ता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर साल अगस्त-सितंबर में इस त्योहार को मनाया जाता है. वैसे तो ओणम का जश्न 10 दिनों तक मनाया जाता है, लेकिन इसमें आखिरी दो दिन सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. ओणम के पहले दिन को उथ्रादम कहा जाता है, जबकि दूसरा दिन मुख्य ओणम यानी कि थिरूओणम कहलाता है. उथ्रादम के दिन घर की साफ-सफाई करने के बाद सजावट की जाती है. फिर थिरूओणम की सुबह पूजा की जाती है. मान्यता है कि थिरूओणम के दिन राजा बलि पधारते हैं. इस बार 10 सितंबर को उथाद्रम है जबकि 11 सितंबर को थिरूओणम मनाया जाएगा. वहीं, कुछ लोग 10 दिन के बाद ही ओनम मनाते हैं, जिसे तीसरा एंव चौथा ओणम कहते हैं.
ओणम क्यों मनाया जाता है?
ओणम राजा बलि के स्वागत में मनाया जाता है. मान्यता है कि राजा बलि कश्यप ऋषि के पर पर पोते, हृणियाकश्यप के पर पोते और महान विष्णु भक्त प्रह्नाद के पोते थे. वामन पुराण के अनुसार असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था. राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे. भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें. भगवान वामन ने ऐसा ही किया. इस तरह राजा बलि के आधिपत्य में जो कुछ भी था वह देवताओं को वापस मिल गया.
वहीं, भगवान वामन ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा और राज्य से मिलने जा सकता है. राजा बलि के इसी आगमन को ओणम त्योहार के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि राजा बलि हर साल ओणम के दौरान अपनी प्रजा से मिलने आते हैं और लोग उनके आगमन पर उनका स्वागत करते हैं.
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ओणम कैसे मनाते हैं?
केरल राज्य के लिए ओणम का विशेष महत्व है. यह राज्य में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों में सबसे प्रमुख है. यह मुख्य रूप से कृषि पर्व है. ओणम का उत्सव 10 दिनों तक चलता है. यह उत्सव केरल के इकलौते वामन मंदिर त्रिक्काकरा से शुरू होता है. तरह-तरह के व्यंजन, लोकगीत, नृत्य और खेलों का आयोजन इस पर्व को अनूठी छटा दे देता है.
ओणम के पहले दिन यानी कि उथ्रादम की रात घर को सजाया जाता है. फिर थिरूओणम के दिन सुबह पूजा होती है. घर पर ढेर सारे शाकाहारी पकवान बनाए जाते हैं. कहते हैं कि इन पकवानों की संख्या 20 से कम नहीं होनी चाहिए. ओणम की थाली को साध्या थाली कहा जाता है.
ओणम में हर घर के आंगन में फूलों की पंखुड़ियों से पूकलम यानी कि रंगोली बनाई जाती है. घर की लड़कियां रंगोली के चारों तरफ लोक नृत्य तिरुवाथिरा कलि करती हैं. पहले दिन यह पूकलम छोटी होती है, लेकिन हर रोज इसमें फूलों का एक और गोला बढ़ा दिया जाता है. इस तरह बढ़ते-बढ़ते 10वें दिन यानी कि तिरुवोनम तक यह पूकलम काफी बड़ी हो जाती है. इस पूकलम के बीच त्रिक्काकरप्पन (वामन अवतार में विष्णु), राजा महाबली और उसके अंग रक्षकों की प्रतिष्ठा होती है. ये मूर्तियां कच्ची मिट्टी से बनाई जाती हैं.
ओणम के दौरान केरल में कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है. इनमें नौका दौड़ा, पूकलम (रंगोली), पुलि कलि (टाइगर डांस) और कुम्मातीकलि (मास्क डांस) शामिल हैं.