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Kaila Devi Mandir: करौली का कैला देवी धाम, जहां आज भी दीये की रोशनी में होते हैं देवी के दर्शन

Kila Devi Temple, Karauli: राजस्थान के करौली जिले में स्थित है मां कैला देवी का पावन शक्तिपीठ, जहां नवरात्रि के पावन पर्व पर देवी के भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. कालीसिल नदी के किनारे स्थित देवी के इस प्राचीन मंदिर का क्या इतिहास है? मां कैला देवी की पूजा और दर्शन का धार्मिक महत्व जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

Kaila Devi Mandir: करौली का कैला देवी धाम, जहां आज भी दीये की रोशनी में होते हैं देवी के दर्शन
Navratri 2025: राजस्थान का कैला देवी शक्तिपीठ

Kila Devi Shaktipeeth, Rajsthan: शारदीय नवरात्रि का महापर्व 22 सितम्बर से प्रारंभ हो चुका है और इसका समापन 02 अक्टूबर को होगा. शक्ति साधना के इस पावन पर्व देश भर के देवी मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है. मां भगवती की आस्था से जुड़ा एक ऐसा पावन धाम राजस्थान के करौली में स्थित है, जिसे लोग कैला देवी मंदिर के नाम से जानते हैं. माता के इस मंदिर में साल भर में आने वाली सभी चार नवरात्रि पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. नवरात्रि के इन दिनों में भी राजस्थान का प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां कैला देवी मंदिर श्रद्धालुओं के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बना हुआ है. आइए देवी के दिव्य धाम के बारे में विस्तार से जानते हैं. 

दीपक की रोशनी में होते हैं देवी के दिव्य दर्शन 

मां केला देवी मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां माता के गर्भगृह में किसी प्रकार की बिजली की व्यवस्था नहीं है. भक्तजन माता के दर्शन केवल तेल और घी से जलने वाले दीपक की रोशनी में करते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे राजस्थान का पहला ऐसा मंदिर माना जाता है जहां दीपक की लौ से माता के दर्शन होते हैं.

देवी मंदिर के पास बहती है पवित्र कालीसिल नदी

मां कैला देवी के मंदिर में दर्शन करने से पहले श्रद्धालु पास ही बहने वाली कालीसिल नदी में स्नान करते हैं. मान्यता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से त्वचा संबंधी रोग शीघ्र ही दूर हो जाते हैं. इसी मान्यता को लिए हुए लोग यहां बड़ी संख्या में आस्था की डुबकी लगाते हैं. 

भौंरा भगत के बिना अधूरे हैं माता के दर्शन

कैला माता के दर्शन के बाद भक्तगण एक और मंदिर में दर्शन के लिए जरूर पहुंचते हैं, जो कि देवी मंदिर के बेहद करीब है. भौंरा भगत नम के इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जब तक इस मंदिर में भक्तगण मत्था न टेकें, तब तक मां केला देवी के दर्शन पूर्ण नहीं माने जाते.

सोने का शिखर और प्राचीन वैभव

त्रिकूट पर्वत पर स्थित मां केला देवी का मंदिर लगभग 900 वर्ष पुराना है. यहां की बड़ी प्रतिमा महालक्ष्मी स्वरूपा मां कैला की है, जबकि दूसरी प्रतिमा चामुंडा देवी की है. मंदिर का शिखर सोने से बना हुआ है, जो भक्तों की आस्था और आकर्षण का केंद्र है.

नवरात्र में होते हैं विशेष अनुष्ठान

नवरात्रि के दौरान यहां 17 विद्वान पंडित विशेष पूजा-अर्चना और पाठ करते हैं. इनमें प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती के 15 पाठ, देवी भागवत का एक पाठ और भैरव स्रोत के 108 पाठ शामिल होते हैं. संध्या के समय माता की आरती और चौमुखा दीपक की विशेष बली दी जाती है. यह परंपरा मंदिर की पहचान बन चुकी है.

हर दिन मिलता है अलग-अलग प्रसाद

नवरात्रि के नौ दिनों में मां को विभिन्न प्रकार के प्रसाद अर्पित किए जाते हैं. पहले दिन मालपुआ, दूसरे दिन खीर, तीसरे दिन मिष्ठान, चौथे दिन मेवा और पांचवें दिन फलों का भोग लगाया जाता है. इसी तरह प्रत्येक दिन अलग-अलग व्यंजन चढ़ाकर भक्तजन मां से कृपा की प्रार्थना करते हैं.

मां कैला देवी का प्राचीन इतिहास 

कैलादेवी प्रतिमा की स्थापना 1114 ईस्वी में महात्मा केदार गिरि ने की थी. 1116 ईस्वी में राजा मुकुंद दास खींची ने यहां लघु मंदिर का निर्माण कराया. इसके बाद करौली के यदुबंशी शासकों ने मंदिर की सार-संभाल की जिम्मेदारी संभाली. राजा गोपाल सिंह ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, वहीं राजा जयसिंहपाल ने स्वर्ण कलश चढ़वाया और पेयजल की व्यवस्था करवाई. बाद में राजा भंवरपाल ने कालीसिल बांध, धर्मशाला और पक्का मार्ग बनवाकर मंदिर परिसर को भव्य स्वरूप प्रदान किया.

लांगुरिया और भक्त परंपरा

माता का आदि सेवक लांगुरिया है. मान्यता है कि लांगुरिया को प्रसन्न किए बिना भक्त मां तक नहीं पहुंच सकते. नवरात्रि के दौरान गाए जाने वाले लोकगीत भी लांगुरिया को संबोधित होते हैं. इसके अलावा भौंरा भगत और गोली भगत जैसे भक्तों की गाथाएं भी मंदिर की लोक परंपरा में गहराई से जुड़ी हैं.

उत्तर भारत का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक मेला

कैलादेवी मंदिर में चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में विशाल मेला आयोजित होता है. इसमें राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली और गुजरात से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. दर्शनार्थियों की भीड़ के आधार पर इसे उत्तर भारत में कुंभ के बाद दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है.

आस्था और अध्यात्म का संगम

नवरात्र के नौ दिनों में कैलादेवी मंदिर परिसर भक्ति, आस्था और अध्यात्म का संगम बन जाता है. दीपक की रोशनी में मां के दर्शन की अद्भुत परंपरा, कालीसिल नदी का पावन स्नान, भैरव और लांगुरिया की पूजा और नौ दिनों के विशेष अनुष्ठान, यह सब मिलकर इस स्थान को अद्वितीय बनाते हैं. विजयादशमी पर कन्या पूजन और भंडारे के साथ नवरात्रि का समापन होगा.

- करौली ​राजस्थान से सागर शर्मा की विशेष रिपोर्ट

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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