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This Article is From Sep 24, 2017

Navratri 2017: पंचम नवरात्र पर करें स्कंदमाता की आराधना

वे देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने स्कन्द कुमार की माता हैं, इसीलिए स्कंदमाता के नाम से जानी जाती है.

Navratri 2017: पंचम नवरात्र पर करें स्कंदमाता की आराधना
मां दुर्गा का पांचवां रुप स्कंदमाता का है. वे देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने स्कन्द कुमार की माता हैं, इसीलिए स्कंदमाता के नाम से जानी जाती है. स्कन्द कुमार को कार्तिकेय, सुब्रमण्यम और मुरुगन के नाम से भी जाता है.

नवरात्रि में देवी दुर्गा के साथ स्कन्द कुमार की प्रतिमा भी प्रतिष्ठित की जाती है. उनके हाथ में धनुष-बाण सुशोभित होता रहता है. वे मोर पर सवार हैं, इसलिए मयूरवाहन कहलाते हैं. धर्मग्रंथों में "कुमार शौर शक्तिधर" कहकर इनकी प्रशंसा की गई है. वही स्कन्द कुमार बालरूप में माता की गोद में बैठे हैं.

 
ऐसा है स्कंदमाता का कल्याणकारी स्वरुप

स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी मां चार भुजाधारी हैं. उनकी दाहिनी भुजा के साथ भगवान स्कन्द गोद में बैठे हुए हैं. बाईं तरफ नीचे वाली भुजा वरदान की मुद्रा में हैं. दाहिनी और बांयीं दोनो ओर की ऊपरी भुजाओं में एक-एक कमल का पुष्प सुशोभित है. उनका वर्ण धवल-शुभ्र है.

वे पद्म यानी कमल के पुष्प विराजमान हैं. इसलिए वे पद्मासना देवी के नाम से भी पूजित हैं. उनका वाहन सिंह है, इसलिए वे सिहंवाहनादेवी भी कहलाती हैं.

देवी दुर्गा अपने इस रुप में कोई भी अस्त्र-शस्त्र धारण नहीं करती हैं. गोद में बालक स्कंद का विराजमान होना इस बात का प्रतीक है, वे बालकों की रक्षिका है और मनुष्यमात्र उनका पुत्र है.

नवरात्रि के पांचवें दिन को शास्त्रों में पुष्कल यानी अत्यधिक शुभ-महत्व वाला कहा गया है. कहते हैं महाकवि कालिदास रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत जैसी कालजयी रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही लिखने में सफल हो पाए थे. माता पहाड़ों पर रहकर भी सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करती हैं.

स्कंदमाता का ध्यान-मंत्र

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्.
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्..
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्.
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्.
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्.
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्कंदमाता का स्तोत्र-पाठ

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्. गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्.
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्.
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्.
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्.
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्.
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्.
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्.
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्.
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्.
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

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