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मान्यतानुसार नारायण होंगे अति प्रसन्न और देंगे मनचाहा वरदान, अगर पूजा में करेंगे इन मंत्रों का जाप

भगवान विष्णु इस जगत के पालनहार हैं और संपूर्ण ब्रह्मांड का संचालन करते हैं. ऐसे में भगवान विष्णु की पूजा करने के दौरान अगर आप मान्यतानुसार इन मंत्रों का जाप करें तो इससे वे अति प्रसन्न होते हैं.

मान्यतानुसार नारायण होंगे अति प्रसन्न और देंगे मनचाहा वरदान, अगर पूजा में करेंगे इन मंत्रों का जाप
इस तरह किया जा सकता है भगवान विष्णु को प्रसन्न.

Vishnu Puja: सनातन धर्म में हर दिन किसी ना किसी भगवान को समर्पित रहता है, ठीक इसी तरह से गुरुवार का दिन जगत स्वामी नारायण यानी कि विष्णु भगवान (Lord Vishnu) का दिन होता है. कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के साथ ही अगर उनके कुछ मंत्रों (Vishnu Mantra) का जाप किया जाए तो इससे वे बहुत खुश होते हैं और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं. यहां जानिए गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा किस तरह से करनी चाहिए और उनके किन मंत्रों का जाप करके आप अपने कष्टों का निवारण कर सकते हैं.

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इस तरह करें भगवान विष्णु की पूजा अर्चना

गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए सबसे पहले सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. साफ स्वच्छ कपड़े पहनें, भगवान विष्णु की तस्वीर या प्रतिमा के सामने सच्चे मन से उनकी आराधना करें. अगर आपके घर में विष्णु भगवान की कोई प्रतिमा नहीं है, तो केले के पौधे को साक्षी यानी की लक्ष्मी नारायण का स्वरूप मानकर उनकी पूजा करें. पूजा के दौरान केला, चना दाल और गुड़ का भोग भगवान विष्णु को लगाएं, फिर घी का दीया लगाकर उनकी आरती करें और मन ही मन अपनी मनोकामना उन्हें बताएं.

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी ।

आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते ।

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः !

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

2. तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।

3. ऊँ श्री त्रिपुराय विद्महे तुलसी पत्राय धीमहि तन्नो: तुलसी प्रचोदयात।।

वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |

पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।

एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |

य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।

4. ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।

यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्”।।

5. ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरु कांचन संन्निभम्।

बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।

6. ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।

7. ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥

8. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्

विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।

लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥

9. ॐ नमो भगवते धनवंतराय

अमृताकर्षणाय धन्वन्तराय

वेधासे सुराराधिताय धन्वंतराय

सर्व सिद्धि प्रदेय धन्वंतराय

सर्व रक्षा कारिणेय धन्वंतराय

सर्व रोग निवारिणी धन्वंतराय

सर्व देवानां हिताय धन्वंतराय

सर्व मनुष्यानाम हिताय धन्वन्तराय

सर्व भूतानाम हिताय धन्वन्तराय

सर्व लोकानाम हिताय धन्वन्तराय

सर्व सिद्धि मंत्र स्वरूपिणी

धन्वन्तराय नमः।

10. ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।

अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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