इस व्रत को करने से श्री कृष्ण के पुत्र को मिली कुष्ठ रोग से मुक्ति, पढ़ें रथ सप्तमी की कथा

अचला सप्तमी को आरोग्य सप्तमी, रथा सप्तमी, और सूर्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के बाद भगवान सूर्य नारायण की पूजा करनी चाहिए. जिस तरह से हर व्रत और त्योहार के पीछे कोई न कोई पौराणिक आधार होता है, उसी तरह से अचला सप्तमी के व्रत रखने के पीछे भी पौराणिक आधार है, तो चलिए जानते हैं सूर्य सप्तमी की कथा और इसका महत्व.

इस व्रत को करने से श्री कृष्ण के पुत्र को मिली कुष्ठ रोग से मुक्ति, पढ़ें रथ सप्तमी की कथा

सूर्य उपासना से दूर होते हैं कष्‍ट, जानिए सूर्य सप्‍तमी की कथा

नई दिल्ली:

माघ मास (Magh Month) में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी (Achala Saptami) मनाई जाती है. यह दिन भगवान सूर्य (Lord Surya) के जन्म दिवस का दिन भी माना जाता है. अचला सप्तमी को सूर्य सप्‍तमी (Surya Saptami), रथ सप्तमी और आरोग्‍य सप्‍तमी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार अचला सप्तमी 7 फरवरी यानि आज मनाई जा रही है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से जातक को आरोग्यता, खास तौर पर चर्म रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है. अचला सप्तमी (Achala Saptami 2022) के दिन खासतौर पर सूर्य की आराधना की जाती है. इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के बाद भगवान सूर्य नारायण की पूजा करनी चाहिए.

मान्यता है कि सूर्योदय से पहले पवित्र नदियों में स्नान करने से सारे कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. इसके साथ ही घर में सुख-शांति बनी रहती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. जिस तरह से हर व्रत और त्योहार के पीछे कोई न कोई पौराणिक आधार होता है, उसी तरह से अचला सप्तमी के व्रत रखने के पीछे भी पौराणिक आधार है, तो चलिए जानते हैं सूर्य सप्तमी की कथा और इसका महत्व.

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रथ सप्तमी का महत्व

मान्यता के मुताबिक, रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव ने अपनी किरणों से संसार को रौशन कर दिया था. इसी वजह से लोग सुबह उठकर सूर्य की पहली किरण के साथ सूर्य भगवान की आराधना-उपासना करते हैं. माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में नहाने से शारीरिक रोगों खासकर त्वचा संबंधी रोगों से मुक्ति मिल जाती है. रथ सप्तमी को सूर्य सप्‍तमी, अचला सप्‍तमी और आरोग्‍य सप्‍तमी के नाम से भी जाना जाता है.

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रथ सप्‍तमी की कथा

हिंदू धर्म में मौजूद पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत घमंड था. एक समय की बात है जब शाम्ब ने ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया था. शाम्ब द्वारा किए गए इस अपमान से क्रोधित होकर ऋषि दुर्वासा ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया. जब भगवान श्री कृष्ण को इस श्राप के बारे में पता चला, तो उन्होंने अपने पुत्र शाम्ब को सूर्य देव की आराधना करने की सलाह दी. पिता की बात मानकर शाम्ब ने सूर्य देव की आराधना की. शाम्ब की आराधना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें कुष्ठ रोग से मु्क्त होने का आशीर्वाद दे दिया.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)