Sakat Chauth 2018: जानिए मुहूर्त और पूजा करने की विधि

Sakat Chauth 2018: ऐसा माना जाता है कि माघ संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की अराधना करने से हर संकट को दूर किया जा सकता है और साथ ही संतान की प्राप्ति भी होती है.गणेश चतुर्थी के बाद भगवान गणेश का ये त्‍यौहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है. महिलाएं अपने बच्‍चों की सफलता की कामना के लिए इस व्रत को करती हैं.

Sakat Chauth 2018: जानिए मुहूर्त और पूजा करने की विधि

माघ संकष्टी चतुर्थी को ऐसे करें भगवान गणेश की पूजा

भगवान गणेश के हर त्योहार का अपना एक अलग महत्व होता है. संकष्टी चतुर्थी भी भगवान गणपति के लिए अपना ही एक विशेष स्थान रखती है. इस साल 2018 में माघ संकष्टी चतुर्थी 5 जनवरी को है. इस दिन व्रत करना भी महत्वपूर्ण रहता है.गणेश चतुर्थी के बाद भगवान गणेश का ये त्‍यौहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है. महिलाएं अपने बच्‍चों की सफलता की कामना के लिए इस व्रत को करती हैं.

माघ मास की चतुर्थी तिथि को संकष्ठी चतुर्थी कहा जाता है. इस तिथि को तिल चतुर्थी, माघी चतुर्थी, माघ संकष्टी चतुर्थी, तिल चौथ या सकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है. यूं तो पूरे साल में हर महीने चतुर्थी आती है लेकिन पूरे साल के दौरान माघ संकष्टी चतुर्थी सबसे बड़ी मानी जाती है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सुख समृद्धि और सौभाग्य पाया जा सकता है.

ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की अराधना करने से हर संकट को दूर किया जा सकता है और साथ ही संतान की प्राप्ति भी होती है. आइए जान लीजिए इस दिन पूजा करने की विधि...
 


माघ संकष्टी चतुर्थी को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करते समय अपना मुंह उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ रखें. भगवान गणे की पीठ का दर्शन न करें. भगवान गणेश की पूजा में मोदक का भोग तो लगता ही है लेकिन इस दिन भगवान गणेश की पूजा में तिल के लड्डू भी चढ़ाने चाहिए. मोदक के अलावा दुर्वा, पुष्प, रोली, फल सहित पंचामृत को भी पूजन में शामिल करें.

संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणपति की आरती जरूर करनी चाहिए. इसके साथ ही संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा जरूर सुननी चाहिए. वहीं इस दिन भगवान की पूजा के वक्त ॐ गणेशाय नम: या ॐ गं गणपतये नम: मंत्र का जाप करना भी काफी शुभ फल देता है. इस साल माघ संकष्टी चतुर्थी को होने वाले पूजन का आरंभ 4 जनवरी रात्रि 9.30 को होगा और 5 जनवरी शाम 7 बजे तक समाप्त हो जाएगा.
 
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