हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल होलिका दहन 12 मार्च को सांय 6 बजकर 30 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट तक किया जा सकता है. इसी दिन भद्रा का मुख सांय 5 बजकर 35 मिनट से 7 बजकर 33 मिनट तक है. हिन्दू धर्मग्रंथों और भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होलिका दहन या पूजन भद्रा के मुख को त्याग करके करना शुभफलदायक होता है. उल्लेखनीय है कि फाल्गुन महीने की पूर्णिमा से पहले प्रदोष काल में होलिका दहन करने की परंपरा है. 12 मार्च को पूर्णिमा उदय व्यापिनी है. इसी दिन भद्रा का मुख सांय 5 बजकर 35 मिनट से 7 बजकर 33 मिनट तक है. इसके अगले दिन यानी 13 मार्च (सोमवार) को होली मनाई जाएगी.
होलिका में आग लगाने से पूर्व होलिका की विधिवत पूजन करने की परंपरा है. बाकायदा एक पुरोहित मंत्रोच्चार कर इस विधि को संपन्न करवाते हैं. रिवाज के अनुसार, जातक को पूजा करते वक्त पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठने की सलाह दी जाती है. होलिका पूजन करने के लिए गोबर से बनी होलिका और प्रहलाद की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच या सात प्रकार के अनाज, नई गेहूं और अन्य फसलों की बालियां और साथ में एक लोटा जल रखना अनिवार्य होता है. साथ ही बड़ी-फूलौरी, मीठे पकवान, मिठाईयां, फल आदि भी चढ़ाए जाते हैं.
इसके बाद होलिका के चारों ओर सात परिक्रमा करते हुये लपेटी जाती है. फिर अग्नि प्रज्वलित करने से जल से अर्घ्य दिया जाता है. सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है, इसके बाद डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है. होलिका दहन के समय मौजूद सभी पुरूषों को रोली का तिलक लगाया जाता है. कहते हैं, होलिका दहन के बाद जली हुई राख को अगले दिन प्रातःकाल घर में लाना शुभ रहता है. अनेक स्थानों पर होलिका की भस्म का शरीर पर लेप भी किया जाता है.
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होलिका में आग लगाने से पूर्व होलिका की विधिवत पूजन करने की परंपरा है. बाकायदा एक पुरोहित मंत्रोच्चार कर इस विधि को संपन्न करवाते हैं. रिवाज के अनुसार, जातक को पूजा करते वक्त पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठने की सलाह दी जाती है. होलिका पूजन करने के लिए गोबर से बनी होलिका और प्रहलाद की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच या सात प्रकार के अनाज, नई गेहूं और अन्य फसलों की बालियां और साथ में एक लोटा जल रखना अनिवार्य होता है. साथ ही बड़ी-फूलौरी, मीठे पकवान, मिठाईयां, फल आदि भी चढ़ाए जाते हैं.
इसके बाद होलिका के चारों ओर सात परिक्रमा करते हुये लपेटी जाती है. फिर अग्नि प्रज्वलित करने से जल से अर्घ्य दिया जाता है. सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है, इसके बाद डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है. होलिका दहन के समय मौजूद सभी पुरूषों को रोली का तिलक लगाया जाता है. कहते हैं, होलिका दहन के बाद जली हुई राख को अगले दिन प्रातःकाल घर में लाना शुभ रहता है. अनेक स्थानों पर होलिका की भस्म का शरीर पर लेप भी किया जाता है.
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