कांवड़ को रंग-बिरंगे कपड़ों, फूलों, नारियल, झंडियों, चित्रों आदि से सजाया जाता है.
                                                                                                                        Kawad making process : 11 जुलाई से कांवड़ यात्रा का शुभारंभ हो गया, जो 23 जुलाई को समाप्त होगी. हिन्दू धर्म में कांवड़ धारण करना एक विशेष अनुष्ठान है. इसे धारण करने वाले को कड़ा परिश्रम करना पड़ता है. कांवड यात्र पर जाने वाले भगवान शिव के अनन्य भक्त होते हैं. शिवभक्तों द्वारा श्रावण मास या विशेष रूप से सावन के सोमवार, महाशिवरात्रि जैसे अवसरों पर भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए उपयोग की जाती है. यह एक धार्मिक वस्तु है, जिसे श्रद्धा और भक्ति के साथ तैयार किया जाता है. इसे बनाने की प्रकिया क्या है आइए आगे आर्टिकल में जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से...
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कांवड़ बनाने की प्रक्रिया निम्नवत है.
कांवड़ बनाने की सामग्री- बांस या मजबूत लकड़ी की छड़ी (2-5 फीट लंबी), रस्सी या मोटा धागा, प्लास्टिक के या तांबे/पीतल के दो कलश, कपड़ा (लाल, केसरिया या भगवा रंग का) अथवा नई साड़ी आदि.
 - झंडियां, फूल, मोती, झालर आदि सजावट सामग्री, हुक या डोरी (कलश बांधने के लिए) सजावटी सामान.
 - मुख्य संरचना तैयार करना के लिए एक मजबूत लकड़ी या बांस की छड़ी ली जाती है, जो दोनों तरफ से बराबर लंबाई की हो.
 - यह छड़ी कंधे पर रखने और मजबूत होती है. कांवड़ का सारा भार इसी छड़ी पर रहता है. इसके दोनों सिरों पर रस्सी या हुक के सहारे गंगा जल भरने हेतु दो कलश लटकाए जाते हैं.
 
कलश बनाने की विधि
- दोनों कलशों को पवित्र जल से धोकर साफ किया जाता है. कलश में जल भरने से पहले भीतर तुलसी या बेलपत्र डालना शुभ माना जाता है.
 - गंगा जल भरने के बाद कलश को अच्छे से ढक्कन या कपड़े से बंद कर दिया जाता है, ताकि जल न गिरे.
 - फिर कलश को कांवड़ की छड़ी से संतुलन के साथ बांधा जाता है. जिससे रास्ते में चलते समय हिले डुले नहीं.
 
- कांवड़ को रंग-बिरंगे कपड़ों, फूलों, नारियल, झंडियों, चित्रों आदि से सजाया जाता है. कुछ भक्तों के समूह एक जैसी कांवड़ बनाकर उसे टीम ड्रेसिंग के रूप में भी दर्शाते हैं.
 - कांवड़ के बीचों-बीच कई बार "जय भोलेनाथ", "हर हर महादेव" जैसे जयकारे लिखे जाते हैं.
 
- कांवड़ को बनाते समय शुद्धता और पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है.
 - इसे जमीन पर नहीं रखा जाता. रास्ते में रुकने पर उसे स्टैंड पर या पेड़ों पर टांग दिया जाता है.
 - जल भरने के बाद कांवड़िया नंगे पांव चलता है और पूरी यात्रा में सात्विक जीवनशैली अपनाता है.
 - जल भरने के लिए भक्त राजघाट , सरवरों, हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख, वाराणसी , गंगा सागर आदि पवित्र तीर्थों पर जाते हैं.
 - गंगा जल को कलशों में भरकर कांवड़ पर बांधते हैं और पैदल यात्रा कर शिव मंदिर में जाकर जलाभिषेक करते हैं.
 - धार्मिक मान्यता है कि कांवड़ यात्रा करने से पापों का नाश होता है और विशेष मनोकामना पूरी होती है.
 - कांवड़ जल शिवलिंग पर चढ़ाने से प्राणी 84 लाख योनियां के जन्म मरण से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है.
 
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