Kaal Bhairav Jayanti Kab Manae Jayegi: हिंदू धर्म में भगवान शिव का स्वरूप माने जाने वाले भैरव देवता की जयंती हर साल मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. मान्यता है कि इसी दिन देवों के देव महादेव ने काल भैरव के रूप में अवतार लिया था. पंचांग के अनुसार इस साल यह पावन पर्व 12 नवंबर 2025, बुधवार को पड़ेगा. हिंदू धर्म में भगवान भैरव की की पूजा किस कामना के लिए की जाती है. काल भैरव जयंती पर किस विधि से पूजा करने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है? आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
कालभैरव जयंती तिथि : 12 नवंबर 2025, बुधवार
अष्टमी तिथि प्रारम्भ : 11 नवंबर 2025, मंगलवार को 11:08 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त : 12 नवंबर 2025, बुधवार को 10:58 बजे

कैसा है भगवान काल भैरव का स्वरूप
सनातन परंपरा में भगवान शिव के पांचवें अवतार माने जाने वाले काल भैरव कई रूपों में पूजे जाते हैं. रुद्रयामल तंत्र में 64 भैरव का जिक्र मिलता है, लेकिन आम तौर पर लोग उनके दो ही स्वरूप का पूजन करते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान भैरव का बटुक स्वरूप जहां सौम्य माना जाता है तो वहीं काल भैरव को उग्र माना जाता है. हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि के नाम से भी पूजा जाता है.
क्यों की जाती है काल भैरव की पूजा?
जिस भैरव देवता से काल भी भय करता है, उनकी पूजा करने वाला साधक को जीवन में किसी प्रकार का भय नहीं होता है. भगवान भैरव अपने भक्तों के सभी दुख को दूर करने वाले हैं. मान्यता है कि काल भैरव जयंती पर विधि-विधान से पूजा करने पर भगवान शीघ्र ही प्रसन्न होकर अपने भक्त के कष्ट दूर और कामनाएं पूरा करते हैं. भगवान काल भैरव की पूजा से साधक की सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और वह अपने शत्रुओं विजय प्राप्त करता है.
भगवान भैरव की पूजा विधि
काल भैरव जयंती के दिन व्यक्ति को प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद भगवान भैरव के मंदिर में जाकर गंगा जल अर्पित् करना चाहिए. इसके बाद भगवान भैरव को फल-फूल, धूप-दीप, मिष्ठान, पान, सुपाड़ी आदि अर्पित् करना चाहिए. भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए साधक को इमरती या जलेबी चढ़ाना चाहिए. भगवान भैरव की पूजा का पूरा पुण्यफल पाने के लिए अंत में उनकी आरती करना बिल्कुल न भूलें.

भगवान काल भैरव की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार परमपिता ब्रह्मा, जगत के पालनहार भगवान विष्णु और कल्याण के देवता माने जाने वाले भगवान शिव के बीच में श्रेष्ठता को लेकर सवाल उठ खड़ा हुआ. इसके बाद सभी देवताओं को बुलाकर इस पर उनकी राय मांगी गई. तब अधिकांश लोगों ने भगवान शिव और भगवान विष्णु को श्रेष्ठ माना. इस बात पर ब्रह्मा जी को क्रोध आ गया और वे नाराज होकर भगवान शिव को अपशब्द कहने लगे.
इस पर शिव जी क्रोधित हो गये और उनके क्रोध से भगवान भैरव का प्राकट्य हुआ. मान्यता है कि जिस दिन भगवान भैरव का प्राकट्य हुआ, वह मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि थी. मान्यता है कि भगवान शिव के रौद्र रूप यानि भगवान भैरव ने ब्रह्मा जी के पांच में से एक सिर को काट दिया था.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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