जितिया का व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है
नई दिल्ली:
हिन्दू धर्म में जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika) या जितिया (Jitiya) व्रत का विशेष महत्व है. यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है. महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए इस निर्जला व्रत को रखती हैं. यह व्रत पूरे तीन दिन तक चलता है और व्रत के दूसरे दिन व्रत रखने वाली महिला पूरे दिन और पूरी रात जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती है. यह व्रत उत्तर भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रचलित है. पड़ोसी देश नेपाल में भी महिलाएं बढ़-चढ़ कर इस व्रत को करती हैं.
जितिया व्रत 2018: जब श्री कृष्ण ने गर्भ में मर चुके बालक को फिर से कर दिया था जीवित, जानिए इस व्रत की पूरी कहानी
जितिया व्रत कब है?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जितिया व्रत अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक मनाया जाता है. इस बार यह व्रत 1 अक्टूबर से लेकर 3 अक्टूबर तक है. व्रत का मुख्य दिन अष्टमी यानी कि 2 अक्टूबर को है.
जितिया व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 2 अक्टूबर 2018 की सुबह 04 बजकर 09 मिनट
अष्टमी तिथि समाप्त: 2 अक्टूबर 2018 को दोपहर 02 बजकर 17 मिनट
जितिया व्रत की पूजा विधि
जितिया में तीन दिन तक उपवास किया जाता है:
- पहला दिन: जितिया व्रत में पहले दिन को नहाय-खायकहा जाता है. इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं.
- दूसरा दिन: व्रत में दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है. यही व्रत का विशेष व मुख्य दिन है जो कि अष्टमी को पड़ता है. इस दिन महिलाएं निर्जला रहती हैं. यहां तक कि रात को भी पानी नहीं पिया जाता है.
- तीसरा दिन: व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है. इस दिन व्रत का पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.
जितिया व्रत की कथा
इस व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था. उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी. इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर उन्हें मार डाला. वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली. अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की साजिश रची. उसने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा. तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा. आगे चलकर यही बच्चा राजा परीक्षित बना.
जितिया व्रत 2018: जब श्री कृष्ण ने गर्भ में मर चुके बालक को फिर से कर दिया था जीवित, जानिए इस व्रत की पूरी कहानी
जितिया व्रत कब है?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जितिया व्रत अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक मनाया जाता है. इस बार यह व्रत 1 अक्टूबर से लेकर 3 अक्टूबर तक है. व्रत का मुख्य दिन अष्टमी यानी कि 2 अक्टूबर को है.
जितिया व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 2 अक्टूबर 2018 की सुबह 04 बजकर 09 मिनट
अष्टमी तिथि समाप्त: 2 अक्टूबर 2018 को दोपहर 02 बजकर 17 मिनट
जितिया व्रत की पूजा विधि
जितिया में तीन दिन तक उपवास किया जाता है:
- पहला दिन: जितिया व्रत में पहले दिन को नहाय-खायकहा जाता है. इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं.
- दूसरा दिन: व्रत में दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है. यही व्रत का विशेष व मुख्य दिन है जो कि अष्टमी को पड़ता है. इस दिन महिलाएं निर्जला रहती हैं. यहां तक कि रात को भी पानी नहीं पिया जाता है.
- तीसरा दिन: व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है. इस दिन व्रत का पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.
जितिया व्रत की कथा
इस व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था. उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी. इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर उन्हें मार डाला. वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली. अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की साजिश रची. उसने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा. तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा. आगे चलकर यही बच्चा राजा परीक्षित बना.
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