
Jivitputrika Vrat 2025 Kab Hai: हिंदू धर्म में संतान से जुड़े तमाम तरह के व्रत में जीवित्पुत्रिका या फिर कहें जितिया व्रत का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. मान्यता है कि नहाय खाय से प्रारंभ होकर तीन दिनों तक चलने वाले इस व्रत को करने पर संतान की आयु बढ़ती है और वह सुखी जीवन जीता है. जितिया व्रत के दिन माताएं अपनी संतान के कल्याण की कामना लिए निर्जल उपवास करती हैं. आइए इस पावन व्रत की पूजा विधि से लेकर पारण तक की पूरी विधि जानते हैं.
जितिया व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त
संतान के सुख-सौभाग्य से जुड़े जिस व्रत को बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के पूर्वी राज्यों में मुख्य रूप से रखा जाता है उसकी शुरुआत इस साल 13 सितंबर 2025 को नहाय खाय से होगी. इसके अगले दिन 14 सितंबर 2025 को विधि-विधान से जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाएगा, जबकि इसका पारण अगले दिन 15 सितंबर को किया जाएगा.

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा
हिंदू मान्यता के अनुसार जितिया व्रत की शुरुआत कलियुग की प्रारंभ में हुई. मान्यता है कि एक बार जीमूतवाहन नाम के राजा कहीं जा रहे थे तभी उन्हें एक रोती हुई स्त्री की आवाज सुनाई दी. जिसके पास जाने पर उन्हें पता चलता कि भगवान श्री विष्णु का वाहन आज उनके पुत्र को उठाकर ले जाएगा और खा जाएगा. तब राजा ने उस महिला को भरोसा दिलाया कि वे उसके बेटे की जगह गरुण का भोजन बनेंगे.
जब उन्होंने महिला के बेटे की जगह खुद को प्रस्तुत किया तो गरुण ने राजा के परोपकार की भावना से प्रसन्न होकर उन्हें वैकुंठ में जाने का आशीर्वाद दिया और बाकी बच्चों को भी पुनर्जीवित कर दिया. मान्यता है कि तभी से क पहले बाकी बच्चों को भी जीवित कर दिया. मान्यता कि तभी से महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा और सौभाग्य के लिए जीमूतवाहन देवता के लिए व्रत और पूजा इस दिन करने लगीं.
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि
जीवित्पुत्रिका व्रत भी छठ के समान होता है. जितिया व्रत का पुण्यफल पाने के लिए महिलाओं को इस व्रत के एक दिन पहले नहाय-खाय की परंपरा निभानी होती है. इस दिन महिलाएं सात्विक भोजन बनाकर पहले अपने पितरों को और फिर कौवे आदि को अर्पित करना होता है. जितिया व्रत वाले दिन महिलाएं को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए और पूरे दिन निर्जल व्रत रखना चाहिए.

जितिया व्रत की पूजा करने के लिए घर के पवित्र स्थान पर मिट्टी और गोबर से लिपाई करके एक छोटा सा तालाब बना लें और वहां पर कुशा की मदद से भगवान जीमूतवाहन (Jimutvahan) को स्थापित करें. इसके साथ वहीं पर मिट्टी और गोबर की मदद से चील और सियारिन की प्रतिमा भी बनाएं और उनकी पूजा भी साथ ही साथ करें. भगवान जीमूतवाहन की धूप-दीप, माला-फूल, रोली-सिंदूर, मिठाई-फल आदि को अर्पित करके जितिया व्रत की कथा पढ़ें या फिर सुनें. व्रत के अगले दिन शुभ मुहूर्त में पारण करके भगवान जीमूतवाहन से संतान की लंबी आयु का आशीर्वाद मांगें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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