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This Article is From Aug 21, 2019

Janmashtami 2019: जन्माष्टमी कब है? 23 या 24 अगस्त, जानिए यहां

Janmashtami: श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्‍व है. यह हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु ने श्रीकृष्‍ण के रूप में आठवां अवतार लिया था.

Janmashtami 2019: जन्माष्टमी कब है? 23 या 24 अगस्त, जानिए यहां
Janmashtami 2019: जन्माष्टमी कब है?
नई दिल्ली:

Janmashtami: जन्माष्टमी 23 अगस्त को है या फिर 24 अगस्त को, इस बात को लेकर उलझन बनी हुई है. कहीं जन्माष्टमी (Janmashtami) 23 अगस्त की बताई जा रही है तो कहीं इसे 24 अगस्त को बताया जा रहा है. आपको बता दें, मान्‍यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्‍म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को हुआ था, जो कि इस बार 23 अगस्त को पड़ रही है. इस वजह से जन्माष्टमी (Janmashtami) 23 अगस्त को ही मनाई जाएगी. 

वहीं, मान्‍यता है कि भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्‍म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. अगर अष्‍टमी तिथि के हिसाब से देखें तो 23 अगस्‍त को जन्‍माष्‍टमी होनी चाहिए, लेकिन अगर रोहिणी नक्षत्र को मानें तो फिर 24 अगस्‍त को कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी होनी चाहिए. आपको बता दें कि कुछ लोगों के लिए अष्‍टमी तिथि का महत्‍व सबसे ज्‍यादा है वहीं कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र होने पर ही जन्‍माष्‍टमी का पर्व मनाते हैं. मथुरा में रोहिणी नक्षत्र के दौरान यानी 24 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी.

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जन्‍माष्‍टमी का महत्‍व
श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्‍व है. यह हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु ने श्रीकृष्‍ण के रूप में आठवां अवतार लिया था. देश के सभी राज्‍य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं.

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इस दिन क्‍या बच्‍चे क्‍या बूढ़े सभी अपने आराध्‍य के जन्‍म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्‍ण की महिमा का गुणगान करते हैं. दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं. वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्‍कूलों में  श्रीकृष्‍ण लीला का मंचन होता है.

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जन्‍माष्‍टमी का व्रत कैसे रखें?
जो भक्‍त जन्‍माष्‍टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए. जन्‍माष्‍टमी के दिन सुबह स्‍नान करने के बाद भक्‍त व्रत का संकल्‍प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्‍टमी तिथि के खत्‍म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं. कृष्‍ण की पूजा नीशीत काल यानी कि आधी रात को की जाती है.

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