
Jaganath rath yatra 2025 : विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 27 जून 2025 दिन गुरुवार से शुरू हो रही है. इसमें भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर अपने भव्य रूप का भक्तों को दर्शन देंगे. यह न सिर्फ एक धार्मिक यात्रा बल्कि सामाजिक सौहार्द का भी प्रतीक है. जिसमें लाखों की संख्या हर जाति धर्म के लोग रथ खींचने के लिए शामिल होते हैं. आपको बता दें कि धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान जगन्नाथ जगत के पालनहार विष्णु जी का ही एक रूप हैं. वहीं, जगन्नाथ जी गजानन जी से मिलता जुलता वेश धारण करके रथ यात्रा के दौरान भक्तों को दर्शन देते हैं. इसके पीछे एक बेहद दिलचस्प पौराणिक कथा छिपी हुई है, जो उनकी भक्तवत्सलता और अलौकिक शक्ति को दर्शाती है. जिसके बारे में बता रहे हैं ज्योतिषाचार्य डॉ अरविंद मिश्र...
गजानन वेश का रहस्य
दरअसल, एक बार जब भगवान जगन्नाथ की यात्रा पुरी में निकाली जा रही थी. उसी दिन भगवान गणेश जी की गणेश चतुर्थी अर्थात गणेश जी का जन्म दिवस भी था. जैसा की आपको पता है भगवान गणेश जी प्रथम पूज्य देवता माने जाते हैं. यह वरदान स्वयं भगवान शिव ने ही गजानन को दिया था. लेकिन पूरी में उस दिन केवल भगवान जगन्नाथ की पूजा हो रही थी.
इस कारण भगवान गणेश असंतुष्ट हो गए. उन्होंने सोचा कि जब भी कोई शुभ कार्य होता है, तो पहले मेरी पूजा होती है. फिर अन्य देवताओं की पूजा होती है. लेकिन पुरी में मेरी उपेक्षा की जा रही है. जब भगवान जगन्नाथ को अपनी योग दृष्टि से भगवान गणेश के नाराज होने के बारे में पता चला तो उन्होंने भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए स्वयं गणेश जी का रूप धारण कर लिया और भक्तों को दर्शन देने लगे, ताकि भक्तों की भावना और संस्कृति और वरदान तीनों का सम्मान बना रहे.
ये तो बात हो गई भगवान जगन्नाथ किसका हैं स्वरूप. आपको बता दें कि भगवान जगन्नाथ से जुड़े कई रोचक रहस्य भीं हैं, जिसे जानने के बाद आपको हैरानी होगी. इसके बारे में आइए जानते हैं रुड़की के ज्योतिर्विद पंडित राजेंद्र शास्त्री से.
श्रीकृष्ण के देहावसान की कथा
महाभारत युद्ध और यादव वंश के विनाश के बाद, श्रीकृष्ण को पता था कि उनका सांसारिक जीवन समाप्त हो रहा है. वे ध्यान में लीन थे तभी एक शिकारी ने उन्हें हिरण समझकर तीर मार दिया. इस तीर के कारण श्रीकृष्ण ने शरीर त्याग दिया.
श्रीकृष्ण के हृदय का रहस्य
लोगों का मानना है कि आज भी यहां पर श्री कृष्ण जी का दिल धड़कता है. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के देहावसान के बाद जब उनका अंतिम संस्कार किया गया, तो उनका हृदय अग्नि में नहीं जला. इस दिव्य हृदय को सुरक्षित रखा गया और इसे भगवान श्रीकृष्ण की अनंत उपस्थिति का प्रतीक माना गया.
पुरी की ओर राजा इंद्रद्युम्न की यात्रा
मालवा के राजा इंद्रद्युम्न, जो भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे को एक दिव्य दर्शन हुआ जिसमें उन्हें पुरी में भगवान विष्णु का मंदिर बनाने का आदेश मिला. उन्होंने श्रीकृष्ण के हृदय को खोजकर पुरी में स्थापित करने का कार्य शुरू किया.
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति निर्माण कथा
पुरी पहुंचने पर, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण कराया. इस कार्य के लिए भगवान विश्वकर्मा को बुलाया गया, जिन्होंने मूर्तियों को एक बंद कमरे में गुप्त रूप से बनाया.
अधूरी मूर्तियों का रहस्य
विश्वकर्मा ने शर्त रखी थी कि काम पूरा होने तक कोई कमरे का दरवाजा नहीं खोलेगा. लेकिन रानी की उत्सुकता के कारण दरवाजा खोल दिया गया, जिससे मूर्तियां अधूरी रह गईं. फिर भी राजा ने इन्हीं मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर दिया.
श्रीकृष्ण से भगवान जगन्नाथ का रूपांतरण
अधूरी मूर्तियों में श्रीकृष्ण के हृदय को स्थापित किया गया और इन्हें भगवान जगन्नाथ का रूप माना गया. जगन्नाथ भगवान की ये मूर्तियां अनोखी गोल आंखों और बिना हाथ-पैर के विशिष्ट स्वरूप के लिए प्रसिद्ध हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)