सौहार्द और सहिष्णुता की मिसाल हैं गोंडा के वजीरगंज के ये मंदिर-मस्जिद

यह परंपरा आज से नहीं बल्कि कई दशकों से चल रही है. यहां पर आज तक तक मंदिर-मस्जिद तक विवादों की आंच नहीं पहुंची है.

सौहार्द और सहिष्णुता की मिसाल हैं गोंडा के वजीरगंज के ये मंदिर-मस्जिद

सौहार्द और सहिष्णुता की मिसाल हैं वजीरगंज के मंदिर-मस्जिद

गोंडा:

मंदिर, मस्जिद को लेकर अयोध्या में जहां कई दशकों तक विवाद चला, वहीं वहां से महज 50 किलोमीटर दूर गोंडा जिले का वजीरगंज समाजिक सौहार्द और सहिष्णुता की मिसाल पेश कर रहा है. यहां हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे का सम्मान कर अपनी सहिष्णुता का परिचय देते हैं. दीवार का फासला रखने वाली मस्जिद की अजान उस समय बंद हो जाती है जब मंदिरों में शंख की आवाज गूंजती है. इसी तरह मस्जिद की अजान के समय मंदिर के घंटे बजने बंद हो जाते हैं.

यह परंपरा आज से नहीं बल्कि कई दशकों से चल रही है. यहां पर आज तक तक मंदिर-मस्जिद तक विवादों की आंच नहीं पहुंची है.

मस्जिद का प्रबंधन करने वाले मोहम्मद अली सिद्दीकी ने बताया, "पुलिस विभाग से रिटायर होने के बाद मैं यहां पर मदरसा और मस्जिद का कार्य देख रहा हूं. वजीरगंज थाने से सटी मस्जिद व मंदिर के बीच केवल बाउंड्री की दूरी है. मंदिर के सामने ही मस्जिद सांप्रदायिक सौहार्द की पहचान है."

उन्होंने बताया, "यहां मंदिर में आरती के वक्त अजान रोक दी जाती है तो अजान के समय आरती. दोनों समुदायों के लोगों में ऐसा अनोखा तालमेल शायद ही कहीं देखने को मिले."

सिद्दीकी कहते हैं, "हम लोग नवदुर्गा और कृष्ण अष्टमी का पर्व बहुत धूम-धाम से मिलकर मनाते हैं. यहां आज तक माहौल नहीं खराब हुआ."

अयोध्या निर्णय पर सिद्दीकी ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को सभी को मानना चाहिए. हालांकि इस मुद्दे पर हमारा कोई ज्यादा लेना-देना नहीं है. हमें तो अपने आपसी भाईचारे को देखना है. सियासी लोग चाहे जो कुछ करें."

उन्होंने कहा, "भाईचारा सबसे पहले है. जिस तरह से यहां के लोग मिलजुल कर रहते हैं, यह एक मिसाल है. एक दूसरे के मजहब के एहतराम से ही सौहार्द होता है."

मंदिर के पुजारी जोगिन्दर गिरी ने कहा कि वजीरगंज कस्बे में गौरेश्वरनाथ शंकर जी मंदिर है. यहां से चंद कदमों की दूरी पर मस्जिद स्थित है.

जोगिन्दर कहते हैं, "हम लोग आपसी तालमेल से आरती और अजान का समय घटा-बढ़ा लेते हैं. सुबह जब आरती होती है तो अजान 15 मिनट आगे कर लेते हैंय यही क्रम परस्पर दोनों ओर से चलता है."

उन्होंने बताया कि चंद कदम की दूरी पर दोनों जगहों पर सौहार्द और सहयोग के साथ अपने-अपने ईष्ट की इबादत होती है.

पुजारी ने बताया, "यह प्रक्रिया कई दशकों से चल रही है. पूजा और इबादत बहुत सालों से हो रही है. पहले मंदिर और मस्जिद छोटे-छोटे थे. इसके बाद दोनों जगहों का विकास हो गया. गोंडा फैजाबाद मार्ग पर स्थित हमारा मंदिर आपसी भाईचारे की अनोखी मिसाल पेश करता है. यहां पर रामजन्मभूमि के आंदोलन के समय भी आपसी भाईचारा कायम रहा. यहां के लोग आंदोलन में शामिल हुए हैं, लेकिन माहौल कभी खराब नहीं हुआ."

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पुजारी ने कहा, "यहां मस्जिद की अजान मंदिर की आरती और भजन को खुद बुलाती है कि अब तुम्हारी बारी है. अधिकतर धर्म की दीवारें तक एक-दूसरे से सटी हुई हैं लेकिन दोनों धर्मों के लोगों को एक-दूसरे से कोई दिक्कत नहीं है. अजान होगी तो दूसरे संप्रदाय के लोग नमाज का एहतराम करते हैं. भजन-कीर्तन के समय भी ऐसा ही होता है. सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के धार्मिक कार्यकर्मो में शिद्दत के साथ शिरकत करते हैं."