फाइल फोटो
आन्ध्र प्रदेश के तिरुमाला शृंखला की सातवीं पहाड़ी पर निवास करने वाले भगवान व्यंकटेश्वर तिरुपति बालाजी भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं। उनके देवालय तिरुपति मंदिर में श्रद्धालु सदियों से चढ़ावा, दान और हुंडिया अर्पित करते आ रहे हैं।
एक आकलन के हिसाब से बालाजी मंदिर ट्रस्ट के खजाने में 50 हजार करोड़ से अधिक की संपत्ति है। भारत के अन्य मंदिरों में जमा धन के लिहाज से बालाजी मंदिर सबसे धनी मंदिर है।
कुबेर के कर्जदार हैं बालाजी...
लेकिन इस मंदिर के इतना धनी होने के बावजूद तिरुपति बालाजी सभी देवताओं में गरीब हैं। आखिर इतना धन होने के बावजूद और याचकों की मन्नतें पूरी करने वाले भगवान बालाजी गरीब क्यों हैं!
दरअसल हिन्दू शास्त्रों में उल्लिखित एक प्राचीन कथा के अनुसार बालाजी धन के अधिपति कुबेर के कर्जदार हैं और कलियुग के अंत तक कर्ज में रहेंगे।
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इसलिए देवताओं में सबसे गरीब हैं बालाजी...
हिन्दू शास्त्रों की मान्यता के अनुसार कर्ज में डूबे व्यक्ति के पास कितना भी कितना भी धन क्यों न हो, उसे गरीब ही माना गया है। इसलिए इस मंदिर में जमा इतनी धन-सम्पदा के बावजूद बालाजी गरीब हैं।
यही कारण है कि बालाजी के ऊपर कुबेर का जो कर्ज है, उसे चुकाने के लिए श्रद्धालु यहां धन, सोना और बहुमूल्य धातु दान करते हैं।
क्या कहता है शास्त्र...
हिन्दू शास्त्रों में वर्णित एक प्राचीन कथा के अनुसार, एकबार भृगु ऋषि विष्णुधाम बैकुंठ पधारे और शेषशैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की छाती पर लात से प्रहार किया। जगतपालक कहे जाने वाले विष्णुजी ने तुरंत भृगु ऋषि के चरण पकड़ पूछा कि ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी।
भगवान विष्णु की इस सहनशीलता से भृगु ऋषि शर्मिंदा हो गए और कहा कि समस्त यज्ञ के प्रमुख और वास्तविक अधिकारी आप ही हैं। लेकिन देवी लक्ष्मी, भृगु ऋषि और विष्णुजी से रुष्ट हो गईं कि भगवान ने भृगु ऋषि को दंड क्यों नहीं दिया।
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पद्मावती के रूप धरती पर लिया जन्म...
शास्त्रों के अनुसार, रुष्ट होकर देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर धरती पर चली आईं और पद्मावती नाम की कन्या के रुप में एक राजा के घर जन्म लिया। उन्हें ढूंढते-ढूंढते भगवान विष्णुजी भी धरती पर आ गए और व्यंकटेश के रुप में पद्मावती के पास पहुंचे।
उन्होंने पद्मावती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया। लेकिन समस्या यह आई कि धरती की मान्यताओं के अनुसार एक राजकुमारी से विवाह के लिए विष्णुजी उतना धन कहां से लाएंगे!
इसलिए विष्णु ने लिया कुबेर से कर्ज...
इस समस्या का समाधान निकालने के लिए विष्णुजी ने ब्रह्मा और शिव को साक्षी रखकर कुबेर से काफी धन कर्ज लिया। इस कर्ज से आयोजित भव्य विवाह से वे व्यंकटेश रुप में देवी लक्ष्मी के अंश पद्मावती के साथ परिणय-सूत्र में बंधे।
कुबेर से कर्ज लेते समय विष्णुजी ने वचन दिया था कि कलियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे और कर्ज की समाप्ति होने तक वे ब्याज (सूद) चुकाते रहेंगे।
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इसलिए भक्त लेते हैं हुंडिया, देते हैं दान...
कुबेर के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण भगवान विष्णु के भक्त बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते हैं ताकि वे कर्ज मुक्त हो जाएं। इस तरह भक्तों से मिले दान की बदौलत तिरुपति मंदिर आज लगभग 50 हजार करोड़ से अधिक की संपत्ति का स्वामी बन चुका है।
लेकिन शास्त्रों के अनुसार, कुबेर का यह कर्ज इतना बड़ा था कि वह आज भी चुकता नहीं हो पाया है। यही कारण है कि धनवान होकर भी भगवान बालाजी देवताओं में गरीब हैं।
एक आकलन के हिसाब से बालाजी मंदिर ट्रस्ट के खजाने में 50 हजार करोड़ से अधिक की संपत्ति है। भारत के अन्य मंदिरों में जमा धन के लिहाज से बालाजी मंदिर सबसे धनी मंदिर है।
कुबेर के कर्जदार हैं बालाजी...
लेकिन इस मंदिर के इतना धनी होने के बावजूद तिरुपति बालाजी सभी देवताओं में गरीब हैं। आखिर इतना धन होने के बावजूद और याचकों की मन्नतें पूरी करने वाले भगवान बालाजी गरीब क्यों हैं!
दरअसल हिन्दू शास्त्रों में उल्लिखित एक प्राचीन कथा के अनुसार बालाजी धन के अधिपति कुबेर के कर्जदार हैं और कलियुग के अंत तक कर्ज में रहेंगे।
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इसलिए देवताओं में सबसे गरीब हैं बालाजी...
हिन्दू शास्त्रों की मान्यता के अनुसार कर्ज में डूबे व्यक्ति के पास कितना भी कितना भी धन क्यों न हो, उसे गरीब ही माना गया है। इसलिए इस मंदिर में जमा इतनी धन-सम्पदा के बावजूद बालाजी गरीब हैं।
यही कारण है कि बालाजी के ऊपर कुबेर का जो कर्ज है, उसे चुकाने के लिए श्रद्धालु यहां धन, सोना और बहुमूल्य धातु दान करते हैं।
क्या कहता है शास्त्र...
हिन्दू शास्त्रों में वर्णित एक प्राचीन कथा के अनुसार, एकबार भृगु ऋषि विष्णुधाम बैकुंठ पधारे और शेषशैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की छाती पर लात से प्रहार किया। जगतपालक कहे जाने वाले विष्णुजी ने तुरंत भृगु ऋषि के चरण पकड़ पूछा कि ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी।
भगवान विष्णु की इस सहनशीलता से भृगु ऋषि शर्मिंदा हो गए और कहा कि समस्त यज्ञ के प्रमुख और वास्तविक अधिकारी आप ही हैं। लेकिन देवी लक्ष्मी, भृगु ऋषि और विष्णुजी से रुष्ट हो गईं कि भगवान ने भृगु ऋषि को दंड क्यों नहीं दिया।
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पद्मावती के रूप धरती पर लिया जन्म...
शास्त्रों के अनुसार, रुष्ट होकर देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर धरती पर चली आईं और पद्मावती नाम की कन्या के रुप में एक राजा के घर जन्म लिया। उन्हें ढूंढते-ढूंढते भगवान विष्णुजी भी धरती पर आ गए और व्यंकटेश के रुप में पद्मावती के पास पहुंचे।
उन्होंने पद्मावती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया। लेकिन समस्या यह आई कि धरती की मान्यताओं के अनुसार एक राजकुमारी से विवाह के लिए विष्णुजी उतना धन कहां से लाएंगे!
इसलिए विष्णु ने लिया कुबेर से कर्ज...
इस समस्या का समाधान निकालने के लिए विष्णुजी ने ब्रह्मा और शिव को साक्षी रखकर कुबेर से काफी धन कर्ज लिया। इस कर्ज से आयोजित भव्य विवाह से वे व्यंकटेश रुप में देवी लक्ष्मी के अंश पद्मावती के साथ परिणय-सूत्र में बंधे।
कुबेर से कर्ज लेते समय विष्णुजी ने वचन दिया था कि कलियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे और कर्ज की समाप्ति होने तक वे ब्याज (सूद) चुकाते रहेंगे।
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इसलिए भक्त लेते हैं हुंडिया, देते हैं दान...
कुबेर के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण भगवान विष्णु के भक्त बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते हैं ताकि वे कर्ज मुक्त हो जाएं। इस तरह भक्तों से मिले दान की बदौलत तिरुपति मंदिर आज लगभग 50 हजार करोड़ से अधिक की संपत्ति का स्वामी बन चुका है।
लेकिन शास्त्रों के अनुसार, कुबेर का यह कर्ज इतना बड़ा था कि वह आज भी चुकता नहीं हो पाया है। यही कारण है कि धनवान होकर भी भगवान बालाजी देवताओं में गरीब हैं।
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