हिंदू सनातन धर्म के अनुसार, आदि पंच देवों में भगवान शिव एक प्रमुख देवता हैं. सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवता की पूजा-आराधना को समर्पित है, वही सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ के लिए खास माना जाता है. सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को समर्पित है. हिंदू धर्म में भगवान शिव (Lord Shiva) ही एकमात्र ऐसे देव हैं, जो भक्तों की पूजा-पाठ से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. आज के दिन भगवान भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. वहीं शिव भक्त आज के दिन बाबा की कृपा पाने के लिए उपवास भी रखते हैं. कहते हैं भगवान शिव शंकर त्रिदेवों में प्रमुख देवता हैं, जिन्हें संहार का देवता माना जाता है. कहते हैं अगर भोलेनाथ को उनका प्रिय भोग लगाया जाए तो उन्हें व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो जाता है. सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करते समय शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है.
संहार के देव होने के बावजूद भगवान शिव अत्यंत भोले हैं, इसीलिए उन्हें भोलेनाथ (Bholenath) भी कहा जाता है. कुंवारी कन्याएं भोलेनाथ का 16 सोमवार का व्रत करती हैं. भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए सोमवार के दिन व्रत पूजन के साथ-साथ मंत्र जाप और स्तोत्र का भी पाठ करते हैं. कहते हैं ऐसा करने से शिव जी की कृपा बनी रहती है और जीवन के सभी कष्ट या परेशानी दूर हो जाती है. कहा जाता है कि अगर किसी को अपने आत्मविश्वास में वृद्धि करना है तो सोमवार के दिन शिव रक्षा स्तोत्र का पाठ करना लाभकारी साबित हो सकता है.
शिव रक्षा स्तोत्र | Shiv Stotra
अस्य श्री शिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः ।
श्री सदाशिवो देवता । अनुष्टुप् छन्दः ।
श्री सदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ॥
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ॥ 1 ॥
गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः ॥ 2 ॥
गङ्गाधरः शिरः पातु फालं अर्धेन्दुशेखरः ।
नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषणः ॥ 3 ॥
घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शितिकन्धरः ॥ 4 ॥
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः ।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ॥ 5 ॥
हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः ।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः ॥ 6 ॥
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः ।
ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ॥ 7 ॥
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ॥ 8 ॥
एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान्कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात् |
ग्रहभूतपिशाचाद्याः त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ॥ 9 ॥
अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽदिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यः तथाऽलिखत् ॥ 10 ॥
इति श्रीयाज्ञवल्क्यप्रोक्तं शिव रक्षा स्तोत्र पूर्ण ।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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