हिंदू धर्म में गणेश जंयती (Ganesh Jayanti) का विशेष महत्व है. माघ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जयंती मनाते हैं. इस वर्ष गणेश जयंती आज 4 फरवरी दिन, शुक्रवार को मनाई जा रही है. इस दिन को माघी गणेश चतुर्थी, माघ विनायक चतुर्थी या तिलकुंड चतुर्थी भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ है.
कहते हैं कि इस दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों को सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. इस दिन मंदिर में मंत्रोउच्चारण कर भगवान गणेश का आह्वान किया जाता है. आइए जानते हैं गौरी गणेश के पूजन के समय किन मंत्रों का जाप कर उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है. इसके साथ ही जानिए इन मंत्रों का अर्थ.
गणेश चतुर्थी के श्लोक और मंत्र | Ganesh Chaturthi Slokas Mantra
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
अर्थ: - घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली, मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें).
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं। विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
अर्थ: - जो एक दांत से सुशोभित हैं, विशाल शरीरवाले हैं, लम्बोदर हैं, गजानन हैं तथा जो विघ्नों के विनाशकर्ता हैं, मैं उन दिव्य भगवान हेरम्बको प्रणाम करता हूं.
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
अर्थ: - विघ्नेश्वर, वर देने वाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओं से परिपूर्ण, जगत का हित करने वाले, गज के समान मुख वाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वती पुत्र को नमस्कार है. हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है.
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
अर्थ: - जो हाथी के समान मुख वाले हैं, भूतगणादिसे सदा सेवित रहते हैं, कैथ तथा जामुन फल जिनके लिए प्रिय भोज्य हैं, पार्वती के पुत्र हैं तथा जो प्राणियों के शोक का विनाश करने वाले हैं, उन विघ्नेश्वर के चरण कमलों में नमस्कार करता हूं.
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्॥
अर्थ:- हे गणाध्यक्ष रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिये. हे तीनों लोकों के रक्षक. रक्षा कीजिए, आप भक्तों को अभय प्रदान करने वाले हैं, भवसागर से मेरी रक्षा कीजिये.
केयूरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुजं पाशवराभयानिं।
सृणिं वहन्तं गणपं त्रिनेत्रं सचामरस्त्रीयुगलेन युक्तम्॥
अर्थ:- मैं उन भगवान गणपति की वन्दना करता हूं, जो केयूर-हार-किरीट आदि आभूषणों से सुसज्जित हैं, चतुर्भुज हैं और अपने चार हाथों में पाशा अंकुश-वर और अभय मुद्रा को धारण करते हैं, जो तीन नेत्रों वाले हैं.
अभिप्रेतार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुरासुरैः ।
सर्वविघ्नच्छिदे तस्मै गणाधिपतये नमः ॥
अर्थ:- मन से विचारित (मनोवांछित) कार्य की सफलता के निमित्त जिन गणेशजी का पूजन सुरों (देवताओं) एवं असुरों (राक्षसों) के द्वारा किया जाता है, सभी विघ्नों के छेदन करने वाले उन विघ्न-विनाशक गणाधिपति (गणेश) देव के प्रति मैं नमन करता हूं. गणेश (गण+ईश) को भगवान शिव के गणों (अनुचरों) का अधिपति या स्वामी कहा जाता है.
यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोः यतः सम्पदो भक्तसन्तोषिकाः स्युः ।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः
अर्थ:- जिनकी कृपा से मोक्ष की इच्छा रखने वालों की अज्ञानमय बुद्धि का नाश होता है, जिनसे भक्तों को संतोष पहुंचाने वाली संपदाएं प्राप्त होती हैं, जिनसे विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं और कार्य में सफलता मिलती है, ऐसे गणेश जी का हम सदैव नमन करते हैं, उनका भजन करते हैं.
मूषिकवाहन् मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बित सूत्र ।
वामनरूप महेश्वरपुत्र विघ्नविनायक पाद नमस्ते ॥
अर्थ:- हे भगवान जिनका वाहन चूहा है, जिनके हाथ में मोदक (लड्डू) है, जिनके कान बड़े पन्खों की समान हैं और जो पवित्र धागा धारण किए हुए हैं. जिनका रूप छोटा तथा जो महेश्वर के पुत्र हैं, जो सभी विघ्नों को हरने वाले हैं, मैं आपके चर्णों में वन्दना करता हूं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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