हिंदू धर्म में बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है. बैकुंठ चतुर्दशी हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव ने सृष्टि का संचालन चार महीने बाद पुन: भगवान श्री हरि विष्णु को सौंप दिया था. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जिन चार महीने के लिए भगवान शयन निद्रा में चले जाते हैं, उस दौरान सृष्टि की संचालन भगवान शिव करते हैं. माना जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. इस साल बैकुंठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi) 17 नवंबर यानि आज (बुधवार) है. यह तिथि भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होती है. इस दिन भक्ति-भाव से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी जातक इस दिन श्रीहरि की पूजा करते हैं या व्रत रखते हैं, उन्हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.
बैकुंठ चतुर्दशी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने काशी में भगवान शिव को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प यानी फूल चढ़ाने का संकल्प लिया था. इस दौरान भगवान श्री हरि विष्णु की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने सभी में से एक स्वर्ण पुष्प (कमल ) कम कर दिया था. पुष्प कम होने पर भगवान विष्णु अपनी 'कमल नयन' आंख को समर्पित करने लगे, उनकी इस भक्ति को देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और बोले कार्तिक मास की अब से इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी 'बैकुंठ चौदस' के नाम से जानी जाएगी. मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जो भी बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का पालन करते हैं, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं.
बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि
- सुबह स्नान आदि से निपटकर दिनभर व्रत रखें.
- रात में भगवान श्री हरि विष्णु की 108 कमल पुष्पों से पूजा करें.
- इसके बाद भगवान शिव शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करें.
- पूजा में इस मंत्र का जाप करना चाहिए: विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्। वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।। इस पूरे दिन विष्णु और शिव जी के नाम का उच्चारण करें.
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