
Ashtami Kanya Pujan: अष्टमी के दिन कन्या पूजन का विधान है
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अष्टमी के दिन कन्या पूजन का विधान है
कन्या पूजन के लिए नौ कन्याओं को आमंत्रित किया जाता है
पूजा पंडालों में अष्टमी के दिन देवी के नौ रूपों का आह्वान किया जाता है
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अष्टमी कब है?
नवरात्रि या नवरात्र के आठवें दिन अष्टमी मनाई जाती है. इस बार अष्टमी 17 अक्टूबर को है:
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 16 अक्टूबर 2018 की सुबह 10 बजकर 16 मिनट से
अष्टमी तिथ समाप्त: 17 अक्टूबर 2018 की दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक.
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अष्टमी कैसे मनाई जाती है?
अष्टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी कि महागौरी का पूजन किया जाता है. सुबह महागौरी की पूजा के बाद घर में नौ कन्याओं और एक बालक को घर पर आमंत्रित किया जाता है. सभी कन्याओं और बालक की पूजा करने के बाद उन्हें हल्वा, पूरी और चने का भोग दिया जाता है. इसके अलावा उन्हें भेंट और उपहार देकर विदा किया जाता है. वहीं बंगाली परिवारों में दुर्गा अष्टमी का विशेष महत्व है. इस दिन लोग सुबह-सवेरे नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर पुष्पांजलि के लिए पंडाल जाते हैं. जब ढेर सारे लोग मां दुर्गा पर पुष्प वर्षा करते हैं तो वह नजारा देखने लायक होता है. महा आसन और षोडशोपचार पूजा के बाद दोपहर में लोग अष्टमी भोग के लिए इकट्ठा होते हैं. इस भोग के तहत भक्तों में दाल, चावल, पनीर, बैंगन भाजा, पापड़, टमाटर की चटनी, राजभोग और खीर का प्रसाद बांटा जाता है. पूजा पंडालों में इस दिन अस्त्र पूजा और संधि पूजा भी होती है. शाम के समय महाआरती होती है और कई रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
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कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त
17 अक्टूबर 2018 को कन्या पूजन के दो शुभ मुहूर्त हैं:
सुबह 6 बजकर 28 मिनट से 9 बजकर 20 मिनट तक.
सुबह 10 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक.
अष्टमी के दिन कैसे करें कन्या पूजन?
- कन्या पूजन के दिन सुबह-सवेरे स्नान कर भगवान गणेश और महागौरी की पूजा करें.
- कन्या पूजन के लिए दो साल से लेकर 10 साल तक की नौ कन्याओं और एक बालक को आमंत्रित करें. आपको बता दें कि बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव ने हर शक्ति पीठ में माता की सेवा के
लिए बटुक भैरव को तैनात किया हुआ है. कहा जाता है कि अगर किसी शक्ति पीठ में मां के दर्शन के बाद भैरव के दर्शन न किए जाएं तो दर्शन अधूरे माने जाते हैं.
- ध्यान रहे कि कन्या पूजन से पहले घर में साफ-सफाई हो जानी चाहिए. कन्या रूपी माताओं को स्वच्छ परिवेश में ही बुलाना चाहिए.
- कन्याओं को माता रानी का रूप माना जाता है. ऐसे में उनके घर आने पर माता रानी के जयकारे लगाएं.
- अब सभी कन्याओं को बैठने के लिए आसन दें.
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- फिर सभी कन्याओं के पैर धोएं
- अब उन्हें रोली, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं.
- इसके बाद उनके हाथ में मौली बाधें.
- अब सभी कन्याओं और बालक को घी का दीपक दिखाकर उनकी आरती करें.
- आरती के बाद सभी कन्याओं को यथाशक्ति भोग लगाएं. आमतौर पर कन्या पूजन के दिन कन्याओं को खाने के लिए पूरी, चना और हलवा दिया जाता है.

- भोजन के बाद कन्याओं को यथाशक्ति भेंट और उपहार दें.
- इसके बाद कन्याओं के पैर छूकर उन्हें विदा करें.
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