अपरा एकादशी को अचला एकादशी भी कहते हैं
अपरा एकादशी को अचला एकादशी भी कहते हैं. इसे ज्येष्ठ महीने के पक्ष के 11वें दिन रखा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार अचला एकादशी का व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और घर में सुख, शांति और समृद्धी आती है.
कहा जाता है कि इस एक व्रत से मकर संक्रांति के प्रयाग स्नान, काशी में शिवरात्रि का व्रत, गया में पिंडदान और भगवान केदारनाथ के दर्शन के बराबर फल की प्राप्ति होती है.
युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने सुनाई थी यह कथा
महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. लेकिन एक दिन मौका पाकर उसके छोटे वज्रध्वज ने द्वेष में आकर उसकी हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया. अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी. रास्ते से जो भी राहगीर गुज़रता, वह प्रेत आत्म उसे परेशान करती. एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे. इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना. वजह जानने के बाद ऋषि ने राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए खुद अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दियाय एकादशी व्रत का पुण्य मिलते ही राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया.
एकादशी तिथी समाप्ति: 22 मई , दोपहर 2 बजकर 43 मिनट पर
पारण करने का मुहूर्त: 23 मई (सुबह 5:30 बजे से)
जब तुलसी ने दिया था गणेश को श्राप... भगवान गणेश से जुड़ी रोचक बातें
कहा जाता है कि इस एक व्रत से मकर संक्रांति के प्रयाग स्नान, काशी में शिवरात्रि का व्रत, गया में पिंडदान और भगवान केदारनाथ के दर्शन के बराबर फल की प्राप्ति होती है.
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