कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं. इस साल 31 अक्टूबर को भगवान का शयनकाल खत्म होगा और इसके बाद ही कोई शुभ कार्य होगा. ये एकादशी दिवाली के 11 दिन बाद आती है. इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद सो कर जागते हैं तो तुलसी के पौधे से उनका विवाह होता है. देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है.
तुलसी धार्मिक, आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक महत्व की दृष्टि से विलक्षण पौधा है, जिस घर में इसकी स्थापना होती है, वहां आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख, शांति और समृद्धि स्वमेव आती है. इससे वातावारण में स्वच्छता और शुद्धता बढती है, प्रदूषण पर नियंत्रण होता है, आरोग्य में वृद्धि होती है, जैसे अनेक लाभ इससे प्राप्त होते हैं. तो आइए जानते हैं तुलसी और उसकी पूजा से जुड़ी 10 उपयोगी, महत्वपूर्ण और रोचक बातें:
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तुलसी धार्मिक, आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक महत्व की दृष्टि से विलक्षण पौधा है, जिस घर में इसकी स्थापना होती है, वहां आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख, शांति और समृद्धि स्वमेव आती है. इससे वातावारण में स्वच्छता और शुद्धता बढती है, प्रदूषण पर नियंत्रण होता है, आरोग्य में वृद्धि होती है, जैसे अनेक लाभ इससे प्राप्त होते हैं. तो आइए जानते हैं तुलसी और उसकी पूजा से जुड़ी 10 उपयोगी, महत्वपूर्ण और रोचक बातें:
- आयुर्वेद के अनुसार, तुलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के विचार में पवित्रता, मन में एकाग्रता आती है और क्रोध पर नियंत्रण होने लगता है. आलस्य दूर हो जाता है. शरीर में दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है. इसके बारे में यहां तक कहा गया है कि औषधीय गुणों की दृष्टि से यह संजीवनी बूटी के समान है.
- तुलसी को संस्कृत में हरिप्रिया कहा गया है अर्थात जो हरि यानी भगवान विष्णु को प्रिय है. कहते हैं, औषधि के रूप में तुलसी की उत्पत्ति से भगवान विष्णु का संताप दूर हुआ था. इसलिए तुलसी को यह नाम दिया गया है. धार्मिक मान्यता है कि तुलसी की पूजा-आराधना से व्यक्ति स्वस्थ और सुखी रहता है.
- पौराणिक कथाओं के अनुसार देवों और दानवों द्वारा किए गए समुद्र-मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए इस पौधे के हर हिस्से में अमृत समान गुण हैं.
- हिन्दू धर्म में मान्यता है कि तुलसी के पौधे की ‘जड़’ में सभी तीर्थ, ‘मध्य भाग (तना)’ में सभी देवी-देवता और ‘ऊपरी शाखाओं’ में सभी वेद यानी चारों वेद स्थित हैं. इसलिए इस मान्यता के अनुसार, तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है और इसके पूजन को मोक्षदायक कहा गया है.
- कहते हैं, जब हनुमान लंका भ्रमण कर रहे थे, तो लंका में विभीषण के घर तुलसी का पौधा देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए थे. रामचरिमानस में वर्णन है: नामायुध अंकित गृह शोभा वरिन न जाई. नव तुलसी के वृन्द तहंदेखि हरषि कपिराई. यही कारण है कि हनुमानजी ने सिर्फ विभीषण के महल को छोड़कर पूरी लंका जला डाली थी.
- मान्यता है कि जिस मृत शरीर का दहन तुलसी की लकड़ी की अग्नि से क्रिया जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं और फिर उनका पुनर्जन्म नहीं होता है अर्थात जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है.
- प्रचलित परंपरा के अनुसार, मृत शैया पर पड़े व्यक्ति को तुलसी दलयुक्त जल सेवन कराया जाता है, क्योंकि हिन्दू विधान में तुलसी की शुद्धता सर्वोपरि है. इससे व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है, ऐसा माना जाता है.
- पद्म पुराण में उल्लिखित है कि जहां तुलसी का एक भी पौधा होता है, वहां त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) निवास करते हैं. इस ग्रंथ में वर्णित है कि तुलसी की सेवा करने से महापातक से महापातक व्यक्ति के सम्पूर्ण पाप भी उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूर्य के उदय होने से अंधकार नष्ट हो जाता है.
- कहते हैं कि जिस पूजा और यज्ञ के प्रसाद में तुलसी-दल नहीं होता है, उस भोग को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं. भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों और स्वरूपों की पूजा में तुलसी का नैवेद्य नहीं होने पर पूजा अधूरी मानी जाती है. विष्णु पूजा के लिए तो यहां तक कहा गया है कि कोई भी नैवेद्य न हो, कोई भी विधान न किया गया हो, और केवल तुलसी का एक पत्ता भी अर्पित कर दिया जाये तो पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त हो जाता है.
- तुलसी का एक नाम वृंदा है. प्राचीन भारत में मथुरा के आसपास कई योजन में फैला इसका एक विशाल वन था, जिसे वृन्दावन कहते थे. वृंदा यानी तुलसी से प्रेम होने के कारण द्वापर युग में भगवान विष्णु, कृष्णावतार में, यहां विहार करते थे. इसलिए उनका एक नाम वृन्दावन बिहारी भी है.
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