देवी काली (फोटो साभार: lucknowkalibari.com)
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक मोहल्ले घसियारी मण्डी में एक कालीबाड़ी है। यूं तो यह मंदिर उतना प्राचीन नहीं है, लेकिन यहां मां काली की पूजा करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
लगभग 152 वर्ष पुराने इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा अनोखी है। एक तो देवी काली की प्रतिमा यहां बैठी हुई मुद्रा में है, जो कि दुर्लभ है। दूसरा यह कि वे पंचमुण्डीय आसन पर विराजमान हैं।
यहां नरमुण्ड पर आसीन हैं देवी काली
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पंचमुण्डीय आसन नरमुण्ड (मानव खोपड़ी) और अन्य चार विशेष प्रकार की पशु-पक्षियों के मुण्ड से बनाया जाता है। यहां जो पंचमुण्डीय आसन है, उसमें नर, बंदर, सांप, उल्लू और चमगादड़ के सिर का इस्तेमाल हुआ है।
हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णन मिलता है कि पंचमुण्डीय आसन देवी काली का प्रिय आसन है, जिस पर बैठ कर वे अपने भक्तों का सदैव भला करती हैं। इसी मान्यता के कारण श्रद्धालु यहां मुरादें लेकर आते हैं।
पशुबलि है वर्जित, दी जाती है कोंहड़े और गन्ने की बलि
इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहां पर पशुबलि नहीं दी जाती है, जो कि अन्य काली मंदिरों में एक आम रिवाज है। पशुबलि के बदले यहां कोंहड़े (पेठा फल) और गन्ने की बलि दी जाती है।
सभी चारों नवरात्रियों में इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है। विशेषकर महाअष्टमी और नवमी तिथि को खास तांत्रिक विधि-विधान से काली पूजन होता है।
लगभग 152 वर्ष पुराने इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा अनोखी है। एक तो देवी काली की प्रतिमा यहां बैठी हुई मुद्रा में है, जो कि दुर्लभ है। दूसरा यह कि वे पंचमुण्डीय आसन पर विराजमान हैं।
यहां नरमुण्ड पर आसीन हैं देवी काली
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पंचमुण्डीय आसन नरमुण्ड (मानव खोपड़ी) और अन्य चार विशेष प्रकार की पशु-पक्षियों के मुण्ड से बनाया जाता है। यहां जो पंचमुण्डीय आसन है, उसमें नर, बंदर, सांप, उल्लू और चमगादड़ के सिर का इस्तेमाल हुआ है।
हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णन मिलता है कि पंचमुण्डीय आसन देवी काली का प्रिय आसन है, जिस पर बैठ कर वे अपने भक्तों का सदैव भला करती हैं। इसी मान्यता के कारण श्रद्धालु यहां मुरादें लेकर आते हैं।
पशुबलि है वर्जित, दी जाती है कोंहड़े और गन्ने की बलि
इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहां पर पशुबलि नहीं दी जाती है, जो कि अन्य काली मंदिरों में एक आम रिवाज है। पशुबलि के बदले यहां कोंहड़े (पेठा फल) और गन्ने की बलि दी जाती है।
सभी चारों नवरात्रियों में इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है। विशेषकर महाअष्टमी और नवमी तिथि को खास तांत्रिक विधि-विधान से काली पूजन होता है।
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