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This Article is From Apr 02, 2024

कब है अक्षय तृतीया, जानिए इस खास पर्व का क्या है महत्व और कहां-कहां की जाती है इस दिन पूजा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ पूजा-पाठ और दान पुण्य कई गुणा अधिक फलदायी होते हैं.

कब है अक्षय तृतीया, जानिए इस खास पर्व का क्या है महत्व और कहां-कहां की जाती है इस दिन पूजा
जानिए कब है अक्षय तृतीया और क्या है इसका महत्व.

हिंदू और जैन धर्म में अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है. हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाया जाता है. अक्षय तृतीया इतनी शुभ तिथि है कि इस अबूझ मुहूर्त होता है. यानी इस दिन विवाह से लेकर नया व्यवसाय करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ पूजा-पाठ और दान पुण्य कई गुणा अधिक फलदायी होते हैं. इस दिन सोने की खरीदारी बहुत शुभ मानी जाती है. आइए जानते हैं कब है अक्षय तृतीया और क्या है इसका महत्व.

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कब है अक्षय तृतीया

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाने वाली अक्षय तृतीया इस वर्ष 10 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी.  वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 11 मई को सुबह 2 बजकर 50 मिनट तक रहेगी. माता लक्ष्मी की पूजा के लिए मुहूर्त सुबह 5 बजकर 49 मिनट से 12 बजकर 23 मिनट तक है.

अक्षय तृतीया का महत्व

अक्षय तृतीया जीवन में सुख सौभाग्य लाती है. इस दिन किया गया कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य कई गुणा अधिक फलदायी माने गए हैं. इस दिन नया काम शुरू करना, वाहन या सोना खरीदना बहुत शुभ होता है. मान्यता है कि अक्षय तृतीया को पूरे दिन अबूझ मुहूर्त (Aboojh Muhurt) रहता है. विवाह जैसे मांगलिग कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नही पड़ती है.

देशभर में मनाई जाती है अक्षय तृतीया

जहां उत्तर भारत में लोग व्रत रखते हैं, नदी स्नान करते हैं, वहीं पश्चिम के राज्यों जैसे राजस्थान और गुजरात में लोग इस दिन सोने या चांदी के बर्तन की खरीदारी करते हैं. दक्षिण के राज्यों, केरल और तमिलनाडु में इस दिन आखा तीज की पूजा विधि-विधान से की जाती है. इस दिन पूरे देया में विवाह और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य किए जाते हैं. जैन धर्म में इस दिन का बहुत महत्व है. कहा जाता है कि इस दिन प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने गन्ने का रस पीकर अपना उपवास समाप्त किया था.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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