प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
दिल्ली की एक अदालत ने तुर्कमेनिस्तान की एक महिला के अपहरण और उससे सामूहिक बलात्कार करने के मामले में चार व्यक्तियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि महिला से जिरह न होने के कारण आरोप साबित नहीं किये जा सके. यह मामला वर्ष 2008 का है और आरोप है कि महिला को देह व्यापार में धकेल दिया गया था.
चारों आरोपियों को बरी करते हुए अतिरिक्त सत्र जज संजीव जैन ने यह भी कहा कि महिला आरोपियों को जानती थी क्योंकि वह कपड़े का कारोबार करते थे.
एक महिला सहित चारों आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता के तहत सामूहिक बलात्कार, अपहरण, धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र तथा अनैतिक व्यापार निवारण कानून (इम्मॉरल ट्रैफिक प्रीवेन्शन एक्ट) के तहत आरोप लगाए गए थे. अदालत ने कहा कि महिला वर्ष 2009 में अपने देश चली गई जिसके बाद सुनवाई के दौरान उसे उपस्थित नहीं किया जा सका. अदालत ने कहा ‘‘चूंकि पीड़ित से जिरह नहीं हो पाई इसलिए शिकायत में उसके द्वारा लगाए गए आरोपों को साबित नहीं किया जा सका.’’
साथ ही अदालत ने यह भी कहा ‘‘ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिससे साबित हो सके कि आरोपियों ने पीड़ित का अपहरण किया, उसे बंद कर रखा और उसे अवैध संबंध बनाने के लिए मजबूर किया या उसे जान से मार डालने या गंभीर नुकसान पहुंचाने की धमकी दे कर उसे उसकी मर्जी के खिलाफ यौन संबंध बनाने के लिए बाध्य किया.’’
जज ने कहा ‘‘इस बात के सबूत नहीं हैं कि आरोपी देह व्यापार का रैकेट चलाते हैं और दूसरे देशों से लड़कियां मंगवाई जाती हैं. आरोपियों ने अपने बयान में कहा है कि वह कपड़ों का कारोबार करते हैं. वह पीड़ित को पहले से जानते थे. वह भी कपड़ों का कारोबार करती थी.’’
अभियोजन के अनुसार, महिला रोजगार की तलाश में जून 2008 में भारत आई थी और आरोपियों ने हवाईअड्डे पर उसे रिसीव किया था. उन्होंने महिला के यात्रा दस्तावेज कथित तौर पर जबरदस्ती ले लिये. महिला ने ई-मेल के माध्यम से पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत में कहा है कि उसे देह व्यापार करने के लिए मजबूर किया गया और इसके लिए उसे जान से मार डालने की धमकी दी गई थी. पीड़ित यहां की भाषा नहीं जानती थी इसलिए वह किसी को बता भी नहीं पाई. 17 दिसंबर 2008 को दर्ज कराई गई शिकायत में पीड़ित ने कहा है कि उसे भूखा रखा गया, दुर्व्यवहार किया गया और मार पीट की गई.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
चारों आरोपियों को बरी करते हुए अतिरिक्त सत्र जज संजीव जैन ने यह भी कहा कि महिला आरोपियों को जानती थी क्योंकि वह कपड़े का कारोबार करते थे.
एक महिला सहित चारों आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता के तहत सामूहिक बलात्कार, अपहरण, धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र तथा अनैतिक व्यापार निवारण कानून (इम्मॉरल ट्रैफिक प्रीवेन्शन एक्ट) के तहत आरोप लगाए गए थे. अदालत ने कहा कि महिला वर्ष 2009 में अपने देश चली गई जिसके बाद सुनवाई के दौरान उसे उपस्थित नहीं किया जा सका. अदालत ने कहा ‘‘चूंकि पीड़ित से जिरह नहीं हो पाई इसलिए शिकायत में उसके द्वारा लगाए गए आरोपों को साबित नहीं किया जा सका.’’
साथ ही अदालत ने यह भी कहा ‘‘ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिससे साबित हो सके कि आरोपियों ने पीड़ित का अपहरण किया, उसे बंद कर रखा और उसे अवैध संबंध बनाने के लिए मजबूर किया या उसे जान से मार डालने या गंभीर नुकसान पहुंचाने की धमकी दे कर उसे उसकी मर्जी के खिलाफ यौन संबंध बनाने के लिए बाध्य किया.’’
जज ने कहा ‘‘इस बात के सबूत नहीं हैं कि आरोपी देह व्यापार का रैकेट चलाते हैं और दूसरे देशों से लड़कियां मंगवाई जाती हैं. आरोपियों ने अपने बयान में कहा है कि वह कपड़ों का कारोबार करते हैं. वह पीड़ित को पहले से जानते थे. वह भी कपड़ों का कारोबार करती थी.’’
अभियोजन के अनुसार, महिला रोजगार की तलाश में जून 2008 में भारत आई थी और आरोपियों ने हवाईअड्डे पर उसे रिसीव किया था. उन्होंने महिला के यात्रा दस्तावेज कथित तौर पर जबरदस्ती ले लिये. महिला ने ई-मेल के माध्यम से पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत में कहा है कि उसे देह व्यापार करने के लिए मजबूर किया गया और इसके लिए उसे जान से मार डालने की धमकी दी गई थी. पीड़ित यहां की भाषा नहीं जानती थी इसलिए वह किसी को बता भी नहीं पाई. 17 दिसंबर 2008 को दर्ज कराई गई शिकायत में पीड़ित ने कहा है कि उसे भूखा रखा गया, दुर्व्यवहार किया गया और मार पीट की गई.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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