
- कई सरकारी स्कूल टीन शेड में चल रहे हैं, जहां बच्चों को असुरक्षित और अनुचित वातावरण में पढ़ाई करनी पड़ती है
- दिल्ली HC ने सरकार को फटकार लगाई है कि स्कूलों की यह स्थिति बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा के लिए गंभीर खतरा है
- कमला मार्केट के स्कूल में प्राइमरी के बच्चे टीन शेड में पढ़ रहे हैं, जिन्हें क्लासरूम में शिफ्ट किया जाएगा
देश की आजादी को 78 साल हो गए हैं. हम अंतरिक्ष तक पहुंच गए हैं लेकिन सरकारी स्कूलों की हालत नहीं बदल पाई है. वैसे तो हर भाषण में कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य हैं लेकिन उनके भविष्य को लेकर सरकार को कोई चिंता नहीं है. देश की राजधानी में बच्चे 45 डिग्री की तपति गर्मी, बरसात और सर्दियों में टीन शेड्स की क्लासरूम में पढ़ने को मजबूर हैं.

दिल्ली में ऐसे आधा दर्जन स्कूल हैं, जहां पर टीन शेड में स्कूल चलाया जा रहा है. तीन स्कूल की हालत को लेकर दिल्ली हाइकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा, हम 2025 में हैं और यह हालत है कि दिल्ली सरकार टिन शेड वाले स्कूल चला रही है. इन स्कूलों से कैसे निजी स्कूलों की प्रतिस्पर्धा करेंगे. कोर्ट ने कहा, ऐसे माहौल में पढ़ाई का होना असुरक्षित और अनुचित है. इन स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई दोनों दांव पर लगी है.

बाकी तीन स्कूलों को लेकर शिक्षा निदेशालय को पत्र लिखा गया है. यह पत्र शिक्षा को लेकर काम करने वाले अशोक अग्रवाल ने लिखा है. सर्वोदय कन्या विद्यालय, जीनत महल, कमला मार्केट, गवर्नमेंट गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल और गवर्नमेंट बॉयज सेकेंडरी स्कूल, अशोक नगर स्कूल को लेकर मामला हाइकोर्ट में है जिसमें करीब 1500 छात्र पढ़ रहे हैं.

एनडीटीवी की टीम जब कमला मार्केट स्थित स्कूल पहुंची तो स्कूल प्रबंधन ने कैमरा पर बात करने से मना कर दिया. लेकिन कहा कि जल्द ही इसका हल निकाला जाएगा. उन्होंने कहा कि, करीब 500 छात्र जो प्राइमरी के हैं वह इन टीन शेड में पढ़ते हैं. लेकिन अब इनको पक्के बने क्लासरूम में शिफ्ट कर दिया जाएगा. यह पूछे जाने पर कि, अभी तक इन क्लास को शिफ्ट क्यों नहीं किया गया तो कहा गया की अभी जो प्रैक्टिकल क्लासरूम है उन्हें बंद करके इन क्लास को शिफ्ट किया जाएगा.
इस मामले में एनडीटीवी ने दिल्ली सरकार के शिक्षामंत्री आशीष सूद से बात की. उन्होंने कहा, 6 महीने में तो यह स्कूल नहीं चले. 27 सालों का जवाब देना होगा. आज हम धीरे धीरे यह सब ठीक कर रहे हैं. लेकिन यह सवाल शिक्षा क्रांति लाने का दावा करने वाले लोगो से भी पूछा जाना चाहिए.

यह पहली बार नहीं है जब स्कूलों की हालत का मामला हाइकोर्ट पहुंचा हो. साल 2024 में कोर्ट ने शिक्षा निदेशालय को कहा था कि, तय समय सीमा के भीतर स्कूलों में डेस्क, किताबें, यूनिफॉर्म और अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, लेकिन अब तक हालात जस के तस हैं.
याचिकाकर्ता अशोक अग्रवाल कहते हैं नेता और अधिकारी का ध्यान सरकारी स्कूलों पर है ही नहीं क्योंकि उनके बच्चे तो महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं. इसलिए उन्हें फ़र्फ़ नहीं पड़ता. वह आगे कहते हैं कि, यह संविधान के खिलाफ है. अगर आप एक अच्छा देश बनाना चाहते हैं एक पढ़ा लिखा देश बनाना चाहते हैं तो इन बच्चो को अच्छी शिक्षा देनी होगी. यह बात पता नहीं क्यों सरकारों को समझ नहीं आती.

वह आगे कहते हैं कि 80 और 90 के दौर में हम हाईकोर्ट को फोटो दिखाते थे कि यह स्कूल टेंट में चल रहा है फिर कोर्ट उसपर सरकार को फटकार लगता था, लेकिन ऐसी हालत अभी भी हमें दिल्ली की स्कूलों में नजर आ रही है. शिक्षा को लेकर सरकारों की बेरुखी ही स्कूलों की इन हालत की वजह है. दावे किए गए कि दिल्ली में स्कूलों की हालात वर्ल्डक्लास स्तर की है लेकिन सच आपके सामने है. इस मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है.
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